Monday, September 28, 2015

रामनगर रामलीला

काशी के रामनगर इलाके की रामलीला दुनिया में मशहूर है। इसका इतिहास बड़ा ही दिलचस्प है। इलेक्ट्रिक लाइट और बल्ब के जमाने में यहां आज भी पेट्रोमैक्स की रोशनी में रामलीला होती है। इसे देखने के लिए देश-विदेश के श्रद्धालु जुटते हैं। साल 1855 में राजा महीपनारायण सिंह ने रामनगर में रामलीला की शुरुआत की थी। ओपन थियेटर की तर्ज पर होने वाली लीलाओं में यह दुनिया की सबसे बड़ी रामलीला है।
माना जाता है कि तुलसीदास ने काशी में सबसे पहले रामलीला की शुरुआत की थी। वे वाराणसी के अलग-अलग मोहल्लों और घाटों पर रामलीला, कृष्णलीला, नरसिंघलीला और वामन लीलाओं का मंचन कराते थे। एक बार महराज महीपनारायण सिंह चुनार में रामलीला के मुख्य अतिथि थे। उन्हें रामलीला स्थल पहुंचने में थोड़ी देर हो गई। तब तक राम द्वारा धनुष तोड़े जाने का मंचन हो चुका था। महाराज को इस नहीं देख पाने का बड़ा मलाल हुआ। ऐसे में उन्हें रामनगर किले में रामलीला की शुरुआत की।
रामलीला की 10 अंजान बातें
1. एक बार महराजा महीपनारायण सिंह के बेटे युवराज उदित नारायण सिंह काफी बीमार थे। रामलीला देखने के दौरान महाराज ने युवराज के ठीक होने की प्रार्थना की। इसी दौरान लीला में भगवान राम बने पात्र ने अपने गले की माला उतार कर राजा को दे दी। राजा ने युवराज को यह माला पहना दी। बस फिर क्या था, अगले ही दिन युवराज पूरी तरह से ठीक हो गए।
2. काशी में उस समय हजारों साधु-संत रहते थे। रामनगर की लीला के दौरन राजघराने के लोग इन्हें किले में इकट्ठा करते थे। उन्हें दान में कीमती चीजें दी जाती थी। ऐसा काशी में भगवान शिव की कृपा को बनाए रखने के लिए किया जाता था।
3. रामलीला के मंचन से पहले रामनगर में अलग-अलग जगहों पर अयोध्या, जनकपुर, अशोक वाटिका, लंका जैसे स्थल बनाए जाते थे। इसके साथ ही धनुषयज्ञ, राज्याभिषेक, सीताहरण, रावणवध जैसी लीलाओं का मंचन महाराजा की मौजूदगी में होता था।
4. पं. कमलाकर मिश्रा ने बताया कि रामनगर की लीला 31 दिन चलती है। यह वक्त भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी से लेकर अश्विन पूर्णिमा तक होता है। इस दौरान हर रोज शाम पांच बजे बिगुल बजता है। इसके बाद महराज की सवारी निकलती है। इसके दो घंटे बाद लीला शुरू हो जाती है, जो रात दस बजे तक चलती है।
5. रामनगर की रामलीला में नाच-गाना नहीं होता है। सिर्फ डायलॉग के जरिए लीलाओं का मंचन किया जाता है।






















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