Wednesday, September 16, 2015

गणेशोत्सव

गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दर्शी तक गणेशोत्सव दस दिनों तक मनाया जाता है. भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी ही गणेश चतुर्थी कहलाती है.
हिंदू धर्म-संस्कृति में अनेक देवी-देवताओं को पूजा जाता है. इन सभी में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. उनको विघ्ननाशक और बुद्धिदाता भी कहा जाता है. किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत उन्हीं का नाम लेकर की जाती है. 
हाथी का सिर होने के चलते उन्हें ‘गजानन’ भी कहते हैं. देश में मनाया जाने वाला गणेशोत्सव उनके महत्व को दर्शाता है. गणेशोत्सव गणेश चतुर्थी से शुरू होता है. विनायक चतुर्थी व्रत भगवान गणेश के जन्मदिन पर रखा जाता है. 
वैसे तो देश के लगभग सभी शहरों में इस पर्व को मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में इस पर्व को विशेष धूमधाम से मनाये जाने की परंपरा है
यहां लोग घरों, मुहल्लों और चौराहों पर भव्य पंडाल सजाकर गणेशजी की स्थापना करते हैं. गणेश चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक अर्थात दस दिन गणेशोत्सव मनाया जाता है. इस साल गणेश चतुर्थी 19 सितम्बर को है यानी गणेशोत्सव 29 सितम्बर तक मनाया जाएगा.
लोककथा एक बार देवी पार्वती स्नान करने के लिए भोगावती नदी गयीं. उन्होंने अपने तन के मैल से एक जीवंत मूर्ति बनायी और उसका नाम ’गणेश‘ रखा. पार्वती ने उससे कहा-हे पुत्र! तुम द्वार पर बैठ जाओ और किसी पुरुष को अंदर मत आने देना. 
कुछ देर बाद स्नान कर के भगवान शिव वहां आए. गणेश ने उन्हें देखा तो रोक दिया. इसे शिव ने अपना अपमान समझा. क्रोधित होकर उन्होंने गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और भीतर चले गए. 
महादेव को नाराज देखकर पार्वती ने समझा कि भोजन में विलंब के कारण शायद वे नाराज हैं. उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर शिव को बुलाया. तब दूसरी थाली देखकर शिव ने आश्र्चयचकित होकर पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? 
पार्वती बोलीं, दूसरी थाली मेरे पुत्र गणेश के लिए है जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है. क्या आपने आते वक्त उसे नहीं देखा? यह बात सुनकर शिव बहुत हैरान हुए. उन्होंने कहा, देखा तो था मैंने. पर उसने मेरा रास्ता रोका. इस कारण मैंने उद्दंड बालक समझकर उसका सिर काट दिया. 
यह सुनकर पार्वती विलाप करने लगीं. तब पार्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया. इस प्रकार पार्वती पुत्र गणेश को पाकर प्रसन्न हो गयीं. 
उन्होंने पति तथा पुत्र को भोजन परोस कर स्वयं भोजन किया. यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी पर हुई थी, इसलिए यह तिथि पुण्य पर्व के रूप में मनाई जाती है.
व्रत की विधि व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान कर समूचे घर को गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए. इसके पश्चात भगवान गणेश का धूप, दीप, पुष्प, फल, नैवेद्य और जल से पूजन करना चाहिए. 
भगवान गणेश को लाल वस्त्र धारण कराया जाता है. यदि वस्त्र धारण कराना संभव ना हो तो लाल वस्त्र दान करना चाहिए. देसी घी के बने 21 लड्डुओं के साथ गणेशजी की पूजा करनी चाहिए. इसमें से दस लड्डू अपने पास रखकर शेष ब्राह्मणों को दान कर देना चाहिए.


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