Friday, September 25, 2015

अनन्त चतुर्दशी

अनन्त चतुर्दशी का व्रत २७ सितम्बर को है।भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्त सूत्र बांधा जाता है। चौदह गांठ वाले अनंत सूत्र को विधिवत धारण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
प्रात:स्नान आदि करने के बाद घर में पूजाघर की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें। शास्त्रों के अनुसार यदि सम्भव हो तो पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करें। कलश पर शेषनाग की शैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा चित्र को रखें। उनके समीप 14 गांठ लगाकर हल्दी से रंगे कच्चे डोरे को रखे और गंन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य द्वारा ॐ अनन्ताय नम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंत सूत्र की विधि-पूर्वक पूजन करें। तत्पश्चात् अनन्त भगवान का ध्यान कर शुद्ध अनन्त को
अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव। 
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥   
मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें। यह धागा अनन्त फल देने वाला है । अनन्त की चौदह गाँठे चौदह लोको को प्रतीक है उनमे अनन्त भगवान विद्यमान रहते है ।
अनंत सूत्र बांध लेने के बाद किसी ब्राह्मण को नैवेद्य में भोग लगाया पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें। पूजा के बाद व्रत-कथा को पढें या सुनें।

अनन्त चतुर्दशी की कथा
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार पाण्डव, कौरवों से द्युत क्रीडा़ में हार जाते हैं और उन्हें 12 वर्ष का वनवास मिलता है | एक दिन भगवान कृष्ण पाण्डवों से मिलने आते हैं | उस दिन युधिष्ठिर सारा वृतान्त उन्हें सुनाते हैं और इस कष्ट से बचाव का उपाय पूछते हैं | तब श्रीकृष्ण जी उन्हें कहते हैं कि आप सभी विधिपूर्वक अनन्त भगवान का व्रत करें | आपका खोया हुआ राज्य आपको पुन: प्राप्त हो जाएगा | फिर भगवान कृष्ण उन्हें एक कथा सुनाते हैं | कथा है :-कृष्ण जी कहते हैं कि प्राचीन समय में सुमन्त नाम का एक ब्राह्मण था | इस ब्राह्मण की सुशीला नाम की एक कन्या थी | ब्राह्मण ने सुशीला के बडे़ होने पर उसका विवाह कौडिन्य ऋषि के साथ सम्पन्न कर दिया | कौडिन्य ऋषि सुशीला को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए | चलते-चलते रास्ते में ही संध्या हो गई | ऋषि नदी के किनारे रास्ते में ही संध्या करने लगे | तभी सुशीला ने देखा कि वहाँ बहुत सी स्त्रियाँ किसी देवता की पूजा कर रही हैं | वह उनके पास जाकर पूछने लगी कि अप किस देवता की पूजा कर रही हैं | उन स्त्रियों ने सुशीला को अनन्त भगवान की पूजा के व्रत की महिमा के विषय में बताया | व्रत के विषय में जानकारी पाने पर सुशीला ने भी वहीम उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गाँठों वाला डोरा हाथ में बाँधकर ऋषि कौडिन्य के पास आ गई |सुशीला के हाथ में बंधे डोरे को देखकर कौडिन्य ने उसका रहस्य पूछा | सुशीला ने सारा वृतान्त उन्हें सुना दिया | कौडिन्य ने सभी कुछ सुनने पर डोरा तोड़कर अग्नि में डाल दिया | इससे भगवान अनन्त का अपमान हुआ | जिसके परिणाम स्वरुप ऋषि सुखी नहीं रह सकें और उनकी सारी धन-दौलत समाप्त हो गई | ऋषि ने सुशीला से इसका कारण पूछा | तब सुशीला ने ऋषि को अनन्त डोरे की बात याद दिलाई | कौडिन्य पश्चाताप से उद्विग्न हो गए और उस डोरे की तलाश में वन चले गए | वन में काफी दिन घूमते-घूमते वह एक दिन भूमि पर गिर पडे़ | तब अनन्त भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और कहा - हे कौडिन्य ऋषि आपने मेरा तिरस्कार किया था | इसलिए तुम्हें इतना कष्ट भोगना पडा़ | अब तुम अपने घर वपिस जाओ और अनन्त चतुर्दशी का व्रत 14 वर्षों तक निरन्तर करो | इससे तुम्हारा दु:ख - दारिद्रय मिट जाएंगें | तुम फिर से धन-धान्य से सम्पन्न हो जाओगे |


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