संतान प्राप्ति के लिए हजारो श्रद्धालुओं ने लगाया वाराणसी के लोलार्क कुंड में डुबकी. भगवान सूर्य का पर्व लोलार्क छठ वाराणसी में बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. इस अवसर पर दूर-दूर से आये बड़ी संख्या में महिलाओं और पुरुषों ने संतान आदि की कामना से लोलार्क कुण्ड में डुबकी लगायी और प्रथम लोलार्क आदित्य की पूजा-अर्चना की.वाराणसी में स्थित लोलार्क कुण्ड काफी प्राचीन है और इसकी खासी मान्यता है जिसके चलते दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ आते है. वाराणसी का लोलार्क कुण्ड में सूर्य के बारह आदित्यों में से प्रथम लोलार्क आदित्य स्थापित है.
लोलार्क छठ यानि यहा के कुण्ड में स्नान करने और पूजा करने की काफी मान्यता है यें कुण्ड काफी प्राचीन है कहा जाता है इस लोलार्क कुंड का संपर्क अन्दर ही अन्दर गंगा नदी से भी है इसके अलावा भगवान सूर्य भी इस कुंड में स्नान करने आते है. इस कुंड में फल छोड़ने से भगवान् सूर्य की कृपा होती है, संतान रत्न की प्राप्ति होती है इसलिए यहाँ खासी भीड़ होती है.
कुंड के डाले फल को खाया नहीं जाता यहाँ लौकी जैसे फल भी कुंड में छोड़े जाते है और जिस फल को छोड़ा जाता है उसे खाया नहीं जाता. जिसके पीछे ये मान्यता है की फल को छोड़ने से संतान रूपी फल की प्राप्ति होगी.लोलार्क छठ पर यहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु आते है कुण्ड में स्नान कर भगवान सूर्य से मनोवांछित फल की कामना करते है.
संतान का सुख
ऐसी मान्यता है की जिनको संतान का सुख नहीं मिल पाता वो यहाँ आकर इस कुण्ड में स्नान करने के बाद भगवान लोलार्क की आराधना करते है तो उनको संतान का सुख जरुर मिलता है.संतान की कामना से ही यहाँ श्रद्धालु देश के कोने-कोने से खीचें चले आते है,जिनकी मनोकामना यहाँ पूरी हो जाती है वो यहाँ अपने बच्चों का मुंडन करवाते है और दान देते है.
यहाँ की एक और खास बात है की यहाँ श्रद्धालु जिन कपडों में स्नान करते है उन वस्त्रों को यहीं छोड़ना पड़ता है और कुण्ड से स्नान के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा जाता.
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