Monday, June 15, 2015

मलमास

इस बार 17 जून से 16 जुलाई तक मलमास पड़ने से जुलाई माह में शादी-विवाह नहीं होंगे. 22 नवंबर को देवोत्थान एकादशी के साथ शुभ मुहूर्त फिर से शुरू होंगे. मलमास में एक ओर जहां शुभ कार्य शादी-विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, भूमि पूजन आदि वजिर्त होते हैं, वहीं दूसरी ओर विशेष पूजा-अर्चना जैसे भागवत नाम संकीर्तन, श्रीमद्भागवत कथा, भगवान शिव की पूजा व रुद्राभिषेक से अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है. मलमास हरेक तीन वर्षो पर आता है.
 क्या है मलमास  : ज्योतिषाचार्य डॉ सदानंद झा बताते हैं कि जब दो अमावस्या के बीच सूर्य की संक्रांति अर्थात सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश नहीं करते हैं तो मलमास होता है. इसे अधिकमास व पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं. मलमास में 12 नहीं, बल्कि 13 माह का साल होता है. मलवास वाले वर्ष दो आषाढ़ का महीना होता है. इस अतिरिक्त मास को भगवान पुरुषोत्तम(विष्णु) धारण करते हैं. इसलिए इसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं.
 तीन वर्षो में आता है मलमास : ज्योतिषाचार्य डॉ झा बताया कि तीन वर्षो में एक बार मलमास आता है. सौर मास के अनुसार ही मलमास लगता है. अधिकमास एक सौरमास होता है. एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक के काल को एक सावन दिन कहते हैं. मध्य मान से एक सौर मास में 30 दिन 10 घंटा व 30 मिनट का समय होता है. एक अमांत से दूसरी अमांत तक एक चंद्रमास होता है. एक चंद्रमास में 29 दिन 13 घंटा व 44 मिनट होते हैं. सौरमास एवं चंद्रमास का दिनात्मक अंतर 21 घंटा 46 मिनट का होता है. एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या के बीच एक चंद्रमास में कोई सूर्य की संक्रांति लगती ही नहीं. सौरमास और चंद्रमास की विसंगति के कारण ही अधिकमास लगता है. इसलिए इसे मलमास भी कहते हैं. इसमें समस्त शुभ कार्य वजिर्त रहते हैं.
 गया में पिंडदान करने का है महत्व : मान्यता है कि मलमास में गया में पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति मिलती है. वहीं दूसरी ओर भगवान शिव की पूजा के लिए शिवलिंग दर्शन से भी अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है. गया में जहां मलमास के दौरान 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है, वहीं भगवान बैद्यनाथ वचनबद्ध होकर देवघर में ही रहते हैं. चूंकि रावण को उन्होंने कहा था कि शिवलिंग जहां रखोगे, वहीं रह जायेगा. गया व देवघर में देश के विभिन्न प्रदेशों के हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं.


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