चन्द्र मास के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका पर्व मनाया जाता है. होली पर्व के आने की सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है. होलाष्टक को होली पर्व की सूचना लेकर आने वाला एक हरकारा कहा जात सकता है. "होलाष्टक" के शाब्दिक अर्थ पर जायें, तो होला+ अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन, जो दिन होता है, वह होलाष्टक कहलाता है. सामान्य रुप से देखा जाये तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे नौ दिनों का त्यौहार है. दुलैण्डी के दिन रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन होता है.
होली की शुरुआत होली पर्व होलाष्टक से प्रारम्भ होकर दुलैण्डी तक रहती है. इसके कारण प्रकृ्ति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है. वर्ष 2016 में 16 मार्च, 2016 से 23 मार्च, 2016 के मध्य की अवधि होलाष्टक पर्व की रहेगी. होलाष्टक से होली के आने की दस्तक मिलती है, साथ ही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है.
होलिका दहन में होलाष्टक की विशेषता (The importance of Holashtak for Holika Dahan)
होलिका पूजन करने के लिये होली से आंठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी खास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है. जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है. जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है. होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है.
होलाष्टक के दिन से शुरु होने वाले कार्य (The tasks to be done during Holashtak)
सबसे पहले इस दिन, होलाष्टक शुरु होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है. इस दिन इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकडियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है. इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकडियां विशेष कर ऎसी लकडियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूट्कर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है.
होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है. इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बडा ढेर बन जाता है. व इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते है. अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है. बच्चे और बडे इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते है.
होलाष्टक में कार्य निषेध (Things that shouldn't be done during Holashtak)
होलाष्टक मुख्य रुप से पंजाब और उत्तरी भारत में मनाया जाता है. होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां उपरोक्त कार्यो का प्रारम्भ होता है. वहीं कुछ कार्य ऎसे भी है जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है. यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है. अपने नाम के अनुसार होलाष्टक होली के ठिक आठ दिन पूर्व शुरु हो जाते है.
होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है. यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते है. इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है.
होलाष्टक की पौराणिक मान्यता (The significance of Holashtak from ancient times)
फाल्गुण शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन अर्थात पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है. इस दिन से मौसम की छटा में बदलाव आना आरम्भ हो जाता है. सर्दियां अलविदा कहने लगती है, और गर्मियों का आगमन होने लगता है. साथ ही वसंत के आगमन की खुशबू फूलों की महक के साथ प्रकृ्ति में बिखरने लगती है. होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान श्री भोले नाथ ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी.
होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को भारत के कुछ भागों में ही माना जाता है. इन मान्यताओं का विचार सबसे अधिक पंजाब में देखने में आता है. होली के रंगों की तरह होली को मनाने के ढंग में विभिन्न है. होली उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडू, गुजरात, महाराष्ट्र, उडिसा, गोवा आदि में अलग ढंग से मनाने का चलन है. देश के जिन प्रदेशो में होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को नहीं माना जाता है. उन सभी प्रदेशों में होलाष्टक से होलिका दहन के मध्य अवधि में शुभ कार्य करने बन्द नहीं किये जाते है.
होलाष्टक का एक अन्य रुप बीकानेर की होली (Bikaner Holi, a unique form of Holashtak)
होलाष्टक से मिलती जुलती होली की एक परम्परा राजस्थान के बीकानेर में देखने में आती है. पंजाब की तरह यहां भी होली की शुरुआत होली से आठ दिन पहले हो जाती है. फाल्गुन मास की सप्तमी तिथि से ही होली शुरु हो जाती है, जो धूलैण्डी तक रहती है. राजस्थान के बीकानेर की यह होली भी अंदर मस्ती, उल्लास के साथ साथ विषेश अंदाज समेटे हुए हैं. इस होली का प्रारम्भ भी होलाष्टक में गडने वाले डंडे के समान ही चौक में खम्भ पूजने के साथ होता है.
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