संतान की कामना से रामेश्वर पंचकोशी तीर्थधाम में अगहन मास में कृष्णपक्ष के छठवें दिन लोग विधि विधान से प्रभु आराधना करते हैं। इसी दिन यहां लगता है लोटा-भंटा मेला।बुधवार को वरुणा नदी के तट पर प्राचीन लोटा भंटा मेला लगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने रावण (जोकि एक ब्राह्मण था) का वध करने के बाद प्रायश्चित के लिए अन्न का त्याग कर दिया था। इसके बाद उन्होंने काशी के रामेश्वरम क्षेत्र में आकर वरुणा नदी के किनारे शिवलिंग की स्थापना किया। उन्होंने लोटे में ही भंटे का चोखा औ बाटी बनाकर शिव को भोग लगाया और व्रत तोड़कर रात में आराम किया।
रामेश्वर क्षेत्र में श्रद्धालु वरुणा नदी में स्नान कर भगवान राम द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा करते हैं। लोग इसे रामेश्वरम महादेव के नाम से जानते हैं और उनका दर्शन करते हैं। पहले इस मेले का नाम बेटा लौटा था। इसमें लोग वरुणा किनारे लोटा और बैंगन लेकर जाते थे और बाटी चोखा बनाते थे। इसके बाद से ही इसका नाम लोटा भंटा रखा गया। इस मेले में प्रसाद के रूप में बाटी चोखा बनाया जाता है और महादेव को अर्पित किया जाता है।
पांडवों ने महादेव को चढ़ाया बाटी चोखा
पंचकोशी यात्रा का काफी धार्मिक महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं ने भी यह यात्रा की थी और उसी से जुड़ी इस लोटा भंटा मेले की कहानी भी है। महाभारत के युद्ध के बाद पांडव जब परमगति पाने के लिए निकले तो वे भी यहां पहुंचे। लेकिन, उन्होंने रामेश्वर महादेव पर रात नहीं बिताई, जो कि यहां का नियम है। इससे रामेश्वर महादेव नाराज हो गए। इसके बाद इसके प्रायश्चित के लिए वहां से लौटे। वरुणा में स्नान के बाद रामेश्वर महादेव की पूजा की और फिर बाटी चोखे का प्रसाद बनाया।
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