Wednesday, October 14, 2015

ब्रह्मचारिणी देवी

नवदुर्गा के दर्शन पूजन के क्रम में दूसरे दिन ब्रह्माघाट स्थित आदिशक्ति माँ श्री ब्रह्मचारिणी देवी, ब्रह्माघाट, का भी दर्शन पूजन होता है। 
नवरात्री के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है. मां ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा का दूसरा स्वरूप हैं तथा भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाली माता हैं. देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है. माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है, तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है.
देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय है. मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी. यह देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन रहती हैं. मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज और शांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर करता है.
देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला होती है और बायें हाथ में कमण्डल होता है. देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप हैं. मां ब्रह्मचारिणी के कई अन्य भी नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा. 
पूजा विधि : 
सर्वप्रथम जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमंत्रित किया है, उन्हें दूध, दही, , घृत, व मधु से स्नान कराऐं तत्पश्चात गणों व योगिनियों की फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें. प्रसाद के पश्चात आचमन करें और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें. देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें “दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू, देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा” मां ब्रह्मचारिणी को अरूहूल का फूल (लाल रंग का एक विशेष फूल) व कमल की माला पहनायें. माता ब्रह्माचारिणी को प्रसन्न करने के लिये शक्कर का भोग लगाया जाता है. तत्पश्चात भोले शंकर की पूजा करें व सबसे अंत में ब्रह्मा जी के नाम से जल, फूल, अक्षत, सहित सभी सामग्री हाथ में लेकर “ॐ ब्रह्मणे नम:” कहते हुए सामग्री भूमि पर रखें. तत्पश्चात मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें.
“मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान” 
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
पाठ करनें के बाद मां ब्रह्मचारिणी मंत्र, स्तोत्र पाठ, कवच का जाप करें. वे इस प्रकार हैं.
“मंत्र”
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
“मां ब्रह्मचारिणी का स्तोत्र पाठ” 
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
“मां ब्रह्मचारिणी का कवच” 
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
मंत्र, स्तोत्र पाठ, कवच के जाप के साथ घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें. अंत में दोनों हाथ जोड़कर सभी देवी देवताओं को प्रणाम करें और क्षमा प्रार्थना करें “आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी.. 
तथा शाम के समय में मां दुर्गा की आरती करें व प्रसाद वितरण करें.
मां ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा की षोडशोपचार (गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य, इन पाँच सामग्री से किया जानेवाला पूजन) सहित पूजा करके जो साधक स्वाधिष्ठान चक्र में मन को स्थापित करता है उसकी साधना सफल हो जाती है और व्यक्ति की कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाती है. जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धा से दुर्गा पूजा के दूसरे दिन मॉ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती है और प्रसन्न रहता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है.

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