Thursday, August 27, 2015

रक्षाबंधन

इस वर्ष 2015 में रक्षा बंधन का त्यौहार 29 अगस्त, को मनाया जाएगा. पूर्णिमा तिथि का आरम्भ 10 अगस्त 2015 को 13:50 से 20:58 पर मनाया जाएगा. प्रात: काल से भद्रा व्याप्ति रहेगी. इसलिए शास्त्रानुसार यह त्यौहार 13:50 के बाद संपन्न किया जाए तो अच्छा रहेगा. परंतु परिस्थितिवश यदि भद्रा काल में यह कार्य करना हो तो भद्रा मुख को त्यागकर भद्रा पुच्छ काल में इसे करना चाहिए. इस कारण से अत्यंत आवश्यक होने पर 29 अगस्त को प्रात: 10:15 से 11:16 तक भद्रा पुच्छ काल में यह कार्य किया जा सकता है.
जब भी कोई कार्य शुभ समय में किया जाता है, तो उस कार्य की शुभता में वृ्द्धि होती है. भाई- बहन के रिश्ते को अटूट बनाने के लिये इस राखी बांधने का कार्य शुभ मुहूर्त समय में करना चाहिए.
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 
इस वर्ष 2015 में रक्षा बंधन का त्यौहार 29 अगस्त, को मनाया जाएगा. पूर्णिमा तिथि का आरम्भ 29 अगस्त 2015 को हो जाएगा. परन्तु सुबह दोपहर 13:50 तक भद्रा व्याप्ति रहेगी. इसलिए शास्त्रानुसार यह त्यौहार 13:50 के बाद संपन्न किया जाए तो अच्छा रहेगा. परंतु परिस्थितिवश यदि भद्रा काल में यह कार्य करना हो तो भद्रा मुख को त्यागकर भद्रा पुच्छ काल में इसे करना चाहिए. इस कारण से अत्यंत आवश्यक होने पर 10 अगस्त को प्रात: 10:15 से 11:16 तक भद्रा पुच्छ काल में यह कार्य किया जा सकता है
सामान्यत: उतरी भारत जिसमें पंजाब, दिल्ली, हरियाणा आदि में प्रात: काल में ही राखी बांधने का शुभ कार्य किया जाता है. परम्परा वश अगर किसी व्यक्ति को परिस्थितिवश भद्रा-काल में ही रक्षा बंधन का कार्य करना हों, तो भद्रा मुख को छोड्कर भद्रा-पुच्छ काल में रक्षा - बंधन का कार्य करना शुभ रहता है. शास्त्रों के अनुसार में भद्रा के पुच्छ काल में कार्य करने से कार्यसिद्धि और विजय प्राप्त होती है. परन्तु भद्रा के पुच्छ काल समय का प्रयोग शुभ कार्यों के के लिये विशेष परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए.
बहन के प्रति भाईयों के दायित्वों का बोध कराने का पर्व
वेद शास्त्रों के अनुसार रक्षिका को आज के आधुनिक समय में राखी के नाम से जाना जाता है. रक्षा सूत्र को सामान्य बोलचाल की भाषा में राखी कहा जाता है. इसका अर्थ रक्षा करना, रक्षा को तत्पर रहना या रक्षा करने का वचन देने से है.
श्रावण मास की पूर्णिमा का महत्व इस बात से और बढ़ जाता है कि इस दिन पाप पर पुण्य, कुकर्म पर सत्कर्म और कष्टों के उपर सज्जनों का विजय हासिल करने के प्रयासों का आरंभ हो जाता है। जो व्यक्ति अपने शत्रुओं या प्रतियोगियों को परास्त करना चाहता है उसे इस दिन वरूण देव की पूजा करनी चाहिए.
दक्षिण भारत में इस दिन न केवल हिन्दू वरन् मुसलमान, सिक्ख और ईसाई सभी समुद्र तट पर नारियल और पुष्प चढ़ाना शुभ समझा जाता है नारियल को भगवान शिव का रुप माना गया है, नारियल में तीन आंखे होती है. तथा भगवान शिव की भी तीन आंखे है.
धागे से जुडे अन्य संस्कार
हिन्दू धर्म में प्रत्येक पूजा कार्य में हाथ में कलावा ( धागा ) बांधने का विधान है. यह धागा व्यक्ति के उपनयन संस्कार से लेकर उसके अन्तिम संस्कार तक सभी संस्करों में बांधा जाता है. राखी का धागा भावनात्मक एकता का प्रतीक है. स्नेह व विश्वास की डोर है. धागे से संपादित होने वाले संस्कारों में उपनयन संस्कार, विवाह और रक्षा बंधन प्रमुख है।
पुरातन काल से वृक्षों को रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा है। बरगद के वृक्ष को स्त्रियां धागा लपेटकर रोली, अक्षत, चंदन, धूप और दीप दिखाकर पूजा कर अपने पति के दीर्घायु होने की कामना करती है। आंवले के पेड़ पर धागा लपेटने के पीछे मान्यता है कि इससे उनका परिवार धन धान्य से परिपूर्ण होगा।
वह भाइयों को इतनी शक्ति देता है कि वह अपनी बहन की रक्षा करने में समर्थ हो सके। श्रवण का प्रतीक राखी का यह त्यौहार धीरे-धीरे राजस्थान के अलावा अन्य कई प्रदेशों में भी प्रचलित हुआ और सोन, सोना अथवा सरमन नाम से जाना गया.

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