Tuesday, April 21, 2015

स्त्रियाँ माँग मेँ सिन्दूर क्योँ लगाती हैँ और इसकी वैज्ञानिकता क्या हैँ ?

(1)भारतीय वैदिक परंपरा खासतौर पर हिंदू समाज में शादी के बाद महिलाओं को मांग में सिंदूर भरना आवश्यक हो जाता है। आधुनिक दौर में अब सिंदूर की जगह कुंकु और अन्य चीजों ने ले ली है। सवाल यह उठता है कि आखिर सिंदूर ही क्यों लगाया जाता है। दरअसल इसके पीछे एक बड़ा वैज्ञानिक कारण है। यह मामला पूरी तरह स्वास्थ्य से जुड़ा है। सिर के उस स्था
न पर जहां मांग भरी जाने की परंपरा है, मस्तिष्क की एक महत्वपूर्ण ग्रंथी होती है,
जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। यह अत्यंत संवेदनशील भी होती है।
यह मांग के स्थान यानी कपाल के अंत से लेकर सिर के मध्य तक होती है। सिंदूर इसलिए लगाया जाता है क्योंकि इसमें पारा नाम की धातु होती है। पारा ब्रह्मरंध्र के लिए औषधि का काम करता है। महिलाओं को तनाव से दूर रखता है और मस्तिष्क हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है। विवाह के बाद ही मांग इसलिए भरी जाती है क्योंकि विवाहके बाद जब गृहस्थी का दबाव महिला पर आता है तो उसे तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारिया आमतौर पर घेर लेती हैं।पारा एकमात्र ऐसी धातु है जो तरल रूप में रहती है। यह मष्तिष्क के लिए लाभकारी है, इस कारण सिंदूर मांग में भरा जाता है।

(2)मांग में सिंन्दूर भरना औरतों के लिए सुहागिन होने की निशानी माना जाता है। विवाह के समय वर द्वारा वधू की मांग मे सिंदूर भरने के संस्कार को सुमंगली क्रिया कहते हैं।
इसके बाद विवाहिता पति के जीवित रहने तक आजीवन अपनी मांग में सिन्दूर भरती है। हिंदू धर्म के अनुसार मांग में सिंदूर भरना सुहागिन होने का प्रतीक है। सिंदूर नारी श्रंगार का भी एक महत्तवपूर्ण अंग है। सिंदूर मंगल-सूचक भी होता है। शरीर विज्ञान में भी सिंदूर का महत्त्व बताया गया है।
सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होनेके कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पडती। साथ ही इससे स्त्री के शरीर में स्थित विद्युतीय उत्तेजना नियंत्रित होती है। मांग में जहां सिंदूर भरा जाता है, वह स्थान ब्रारंध्र और अध्मि नामक मर्म के ठीक ऊपर होता है।
सिंदूर मर्म स्थान को बाहरी बुरे प्रभावों से भी बचाता है। सामुद्रिक शास्त्र में अभागिनी स्त्री के दोष निवारण के लिए मांग में सिंदूर भरने की सलाह दी गई है।
स्त्रियाँ क्योँ लगाती हैँ माँग मेँ सिन्दूर और इसकी वैज्ञानिकता क्या? (1)भारतीय वैदिक परंपरा खासतौर पर हिंदू समाज में शादी के बाद महिलाओं को मांग में सिंदूर भरना आवश्यक हो जाता है। आधुनिक दौर में अब सिंदूर की जगह कुंकु और अन्य चीजों ने ले ली है। सवाल यह उठता है कि आखिर सिंदूर ही क्यों लगाया जाता है। दरअसल इसके पीछे एक बड़ा वैज्ञानिक कारण है। यह मामला पूरी तरह स्वास्थ्य से जुड़ा है। सिर के उस स्था न पर जहां मांग भरी जाने की परंपरा है, मस्तिष्क की एक महत्वपूर्ण ग्रंथी होती है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। यह अत्यंत संवेदनशील भी होती है। यह मांग के स्थान यानी कपाल के अंत से लेकर सिर के मध्य तक होती है। सिंदूर इसलिए लगाया जाता है क्योंकि इसमें पारा नाम की धातु होती है। पारा ब्रह्मरंध्र के लिए औषधि का काम करता है। महिलाओं को तनाव से दूर रखता है और मस्तिष्क हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है। विवाह के बाद ही मांग इसलिए भरी जाती है क्योंकि विवाहके बाद जब गृहस्थी का दबाव महिला पर आता है तो उसे तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारिया आमतौर पर घेर लेती हैं।पारा एकमात्र ऐसी धातु है जो तरल रूप में रहती है। यह मष्तिष्क के लिए लाभकारी है, इस कारण सिंदूर मांग में भरा जाता है। (2)मांग में सिंन्दूर भरना औरतों के लिए सुहागिन होने की निशानी माना जाता है। विवाह के समय वर द्वारा वधू की मांग मे सिंदूर भरने के संस्कार को सुमंगली क्रिया कहते हैं। इसके बाद विवाहिता पति के जीवित रहने तक आजीवन अपनी मांग में सिन्दूर भरती है। हिंदू धर्म के अनुसार मांग में सिंदूर भरना सुहागिन होने का प्रतीक है। सिंदूर नारी श्रंगार का भी एक महत्तवपूर्ण अंग है। सिंदूर मंगल-सूचक भी होता है। शरीर विज्ञान में भी सिंदूर का महत्त्व बताया गया है। सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होनेके कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पडती। साथ ही इससे स्त्री के शरीर में स्थित विद्युतीय उत्तेजना नियंत्रित होती है। मांग में जहां सिंदूर भरा जाता है, वह स्थान ब्रारंध्र और अध्मि नामक मर्म के ठीक ऊपर होता है। सिंदूर मर्म स्थान को बाहरी बुरे प्रभावों से भी बचाता है। सामुद्रिक शास्त्र में अभागिनी स्त्री के दोष निवारण के लिए मांग में सिंदूर भरने की सलाह दी गई है।


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