हर वर्ष 14 या 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। जिस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, उस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है। इस वर्ष 14 जनवरी की शाम को सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर रहा है, इस कारण 14 नहीं, 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाना चाहिए। इस संबंध में पंचांग भेद भी हैं। प्राचीन परंपराओं के अनुसार इन दिन दान और नदी स्नान का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग संक्रांति पर दान करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और दुख-दर्द से छुटकारा मिलता है।
मकर संक्रांति के दिन लोग खिचड़ी बनाते हैं और सूर्य देव को खिचड़ी प्रसाद स्वरूप अर्पित करते हैं। सूर्य देव भी इस दिन भक्तों से प्राप्त खिचड़ी का स्वाद बड़े आनंद से लेते हैं। आखिर ऐसा क्यों न हो, इस दिन खिचड़ी बनाने और इसे ही प्रसाद स्वरूप देवाताओं को अर्पित करने की परंपरा शुरू करने वाले भगवान शिव जो माने जाते हैं।
खिचड़ी की बात सुनकर अगर आपको पिछले साल की खिचड़ी याद आ रही है तो हो सकता है कि मुंह में पानी आ गया हो। साल भर में आपने भले ही कितनी ही बार खिचड़ी खायी हो लेकिन मकर संक्रांति जैसी खिचड़ी का स्वाद आपको सिर्फ मकर संक्रांति के मौक पर ही मिल सकता है। मान्यता है कि उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने की परंपरा की शुरूआत हुई।
यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है। खिचड़ी बनने की परंपरा को शुरू करने वाले बाबा गोरखनाथ थे। बाबा गोरखनाथ को भगवान शिव का अंश भी माना जाता है। कथा है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमज़ोर हो रहे थे।.
No comments:
Post a Comment