शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि व्रत का विशेष महत्व है l तिथिनुसार यह पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है I अंग्रेजी महीने के हिसाब से यह फरवरी-मार्च में आता है l यह त्यौहार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पूरे दिन और रात मौजूद रहता है l पूरे देश में यह त्यौहार हर्षोल्लासपूर्वक मनाया जाता है l पड़ोसी देश नेपाल में भी महाशिवरात्रि का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है l वहां के विश्वप्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में इस पर्व पर नेपाल और भारत से लाखों श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना की जाती है l
मारकण्डेय महादेव मंदिर उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थलों में से एक है l यह स्थान वाराणसी ( काशी ) से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर चौबेपुर के पास , वाराणसी-गाजीपुर मार्ग के दाहिनी ओर कैथी नामक गाँव में स्थित है l इसे काशीराज दिवोदास की बसाई दूसरी काशी भी कहते है l यह गंगा-गोमती संगम के पावन तट पर स्थित है l मारकण्डेय महादेव मंदिर के शिवलिंग पर जो बेल पत्र चढ़ाया जाता है, उस पर चन्दन से श्रीराम का नाम लिखा जाता है जो कि मंदिर के द्वार पर पंडितों द्वारा प्राप्त होता है l
मारकण्डेय महादेव मंदिर के बारे में एक कथा प्रचलित है , कहा जाता है कि प्राचीन काल में मृकण्ड ऋषि तथा उनकी पत्नी मरन्धती संतानहीन थे l “बिना पुत्रो गति नाश्ति” अर्थात “बिना पुत्र के गति नहीं होती” ,ऐसे विचार के कारण वे बहुत दुःखी रहते थे l इन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का रास्ता बताया कि आप शंकर जी की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करके पुत्र प्राप्त कर सकते हैं। इस बात से प्रसन्न होकर मृकण्ड ऋषि गंगा-गोमती के पावन संगम तट पर भगवान शंकर की घोर उपासना में लीन हो गये।प्राचीनकाल में यह स्थान अरण्य ( जंगल , वन ) था जो कि वर्तमान में कैथी ( चौबेपुर,वाराणसी,उत्तरप्रदेश ) नाम से प्रसिद्ध है l कुछ वर्षों बाद प्रसन्न होकर शंकर जी ने उन्हें दर्शन दिया और वर माँगने के लिए कहा। मृकण्ड ऋषि ने याचना की कि- “भगवान मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो।” इस पर भगवान शिव ने कहा- “तुम्हें दीर्घायु वाला अनेक गुणहीन पुत्र चाहिए या फिर अल्पायु वाला एक गुणवान पुत्र।” मुनि ने कहा कि- “प्रभु! मुझे एक गुणवान पुत्र ही चाहिए।” समय आने पर मुनि के यहाँ पुत्र रत्न का जन्म हुआ , जिसका नाम मारकण्डेय रखा गया l बालक को मृकण्ड ऋषि ने शिक्षा-दिक्षा के लिए आश्रम भेजा।वक्त बीतने के साथ बालक की अल्प आयु की चिन्ता मृकण्ड ऋषि को सताने लगी। दोनों दम्पत्ति दुःखी रहने लगे।मार्कण्डेय जी को माता-पिता का दुःख न देखा गया। वे कारण जानने के लिए हठ करने लगे। बाल हठ के आगे विवश होकर मृकण्ड ऋषि ने पुत्र को उसके जन्म से जुड़ा सारा वृतान्त सुना दिया। मारकण्डेय समझ गये कि परमपूज्य ब्रह्मा की लेखनी को मिटा कर जब भगवान शंकर के आशिर्वाद से वे पैदा हुए हैं, तो इस संकट में भी शंकर जी की ही शरण लेनी चाहिए। मारकण्डेय जी पावन गंगा-गोमती के संगम पर बैठ कर घनघोर तपस्या में लीन हो गये।वे बालू की प्रतिमा बनाकर शिव पूजा करते हुए उनके उम्र के बारह साल बीतने को आये। एक दिन यमराज ने बालक मारकण्डेय को लेने के लिए अपने दूत को भेजा। भगवान शंकर की तपस्या में लीन बालक को देख यमराज के दूत का साहस टूट गया। उसने जाकर यमराज को सारा हाल बताया। तब जाकर यमराज स्वयं बालक को लेने भैंसे पर सवार होकर आये। जब यमराज बालक मारकण्डेय को लेने आये, तब वह शंकर जी की तपस्या में लीन थे तथा भगवान शंकर व माता पार्वती अदृशय रूप में उनकी रक्षा के लिए वहाँ मौजूद थे l यमराज का त्रास देखकर भगवान शंकर भक्त की रक्षा करने हेतु प्रकट हो गये और उन्होंने कहा कि मेरा भक्त सदैव अमर रहेगा , मुझसे पहले उसकी पूजा की जायेगी l तभी से उस जगह पर मारकण्डेय जी व महादेव जी की पूजा की जाने लगी और तभी से यह स्थल ‘मारकण्डेय महादेव तीर्थ धाम’ के नाम से प्रसिद्द हो गया l यहाँ तक की “कैथी” गांव भी जनमानस में मारकण्डेय जी के नाम से ही ज्यादा प्रचलित है l यहाँ दूर-दराज से लोग पुत्र प्राप्ति की कामना लेकर आते है l इस स्थल पर पति-पत्नी का जोड़ा पीत वस्त्र धारण कर पुत्र प्राप्ति के लिए ‘हरिवंशपुराण’ का पाठ कराते हैं।
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