Wednesday, November 11, 2020

गुरुबाग गुरुद्वारा , गुरुबाग

 ऐक ॐकार सतनाम ..... 

 गुरुद्वारा गुरुबाग गुरुनानक देव महाराज की चरण स्पर्श भूमि है। 

गुरुनानक देव जी की यात्रा के बारे में बताते हुए गुरुद्वारा गुरुबाग के प्रमुख ग्रंथी श्री सुखदेव सिंह जी ने कहा कि फरवरी 1507 में शिवरात्रि के अवसर पर गुरु नानक देव वाराणसी की यात्रा पर आए थे। वर्तमान गुरुद्वारे के स्थान पर उस समय यहां सुंदर बाग था। इसी स्थान पर गुरु नानक देव शबद-कीर्तन कर रहे थे, जिससे प्रभावित होकर बाग के मालिक पंडित गोपाल शास्त्री उनके शिष्य बन गए और अपना बाग उन्हें अर्पित कर दिया। तभी से यहां का नाम सुंदर बाग की जगह गुरुबाग हो गया।

चतुरदास का भी मन निर्मल किया था

गुरुनानक देव जी की यहां यात्रा के दौरान कई विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित करने वाले पंडित चतुरदास ईष्र्यावश उनके पास पहुंचे। इस पर गुरुनानक ने मुस्कुराते हुए स्वयं कहा कि पंडित चतुरदास जी यदि आप को मुझसे कुछ प्रश्न करने हैं तो इस बाग के भीतर एक कुत्ता है, आप उसे यहां लाइए, वही आपके प्रश्नों का उत्तर देगा। हम इस वाद-विवाद के झमेले में पड़ना नहीं चाहते। गुरुजी का इशारा पाकर पंडित जी कुछ ही दूर गए थे कि उन्हें कुत्ता मिला, जिसे वे लेकर आए। गुरु नानक देव ने जब उस पर दृष्टि डाली तो कुत्ते के स्थान पर सुंदर स्वरूप धोती, जनेऊ, तिलक, माला आदि धारण किए एक विद्वान बैठा नजर आया। लोगों के पूछने पर उसने बताया कि मैं भी एक समय विद्वान था, लेकिन मेरे भीतर ईष्या व अहंकार भरा हुआ था। काशी में आने वाले सभी साधु, संत, महात्मा, जोगी, सन्यासी को अपने शास्त्रार्थ से निरुत्तर कर यहां से भगा देता था। एक बार एक महापुरुष से काफी देर तक वाद-विवाद करता रहा। उन्होंने मेरे हठधर्मिता पर मुझे शाप दे दिया। माफी मांगने पर उन्होंने कहा कि कलयुग में गुरु नानक जी का आगमन होगा, उनकी कृपा दृष्टि से ही तेरा उद्धार होगा। गुरुनानक देव ने उपदेश देते हुए कहा कि कर्म कांड और बाह्य आडंबर में लोग लिप्त हैं, लेकिन इनसे मोक्ष की प्राप्ति तब तक नहीं हो सकती जब तक कि निश्चय के साथ परम पिता का स्मरण न किया जाए। गुरुजी के अलौकिक वचनों को सुन सभी के शीश श्रद्धापूर्वक गुरु चरणों में झुक गए, वहीं पंडित चतुरदास का मन भी निर्मल हो गया। इस पर पंडित गोपाल शास्त्री ने कहा कि गुरु महाराज आपके चरण पडऩे से मेरा ये बाग पवित्र हो गया है। इसलिए अब ये बाग आपके चरणों में समर्पित है। उसी दिन से यह बाग 'गुरुबाग' के नाम से प्रसिद्ध हो गया।