Saturday, May 28, 2016

हजरत सैयद मुख्तार अली शाह उर्फ लाटशाही बाबा का सालाना उर्स

सर्किट हाउस स्थित सैयद मुख्तार लाट शाही बाबा का आस्ताना लोगों की आस्था का केंद्र है। गाजीपुर से 1742 में बनारस आने वाला ये बाबा महाराजा चेतसिंह की सेना में सिपहसालार थे। महाराज ने उन्हें शिवपुर रियासत का शहर काजी नियुक्त किया था। उनका फैसला देशभर में मशहूर था। जब अंग्रेजी सेना से राजा चेतसिंह और उनके परिवार घेरा था तो उन्होंने महाराजा बनारस के परिवार को अंग्रेजों के चंगुल से भी बचाया था और इस दौरान वे शहीद भी हो गए। बाबा के आस्ताने से आज भी कोई खाली नहीं जाता।





























Tuesday, May 24, 2016

नरसिंह लीला

गंगा सप्तमी के बाद पड़ने वाले पांच दिवसीय नरसिंह लीला का मंगलवार की रात्रि से शहर के प्रह्लाद घाट पर शुरूआत हुई।
इस बारे में बात करते हुए लीला समिति के अध्यक्ष मोहित उपाध्याय ने बताया कि यह लीला सैंकड़ों वर्ष पुरानी है, जिसे काशी के कलाकार प्रह्लाद घाट पर जीवंत करते आ रहे हैं। नरसिंह लीला के पहले दिन जय- विजय के श्राप की लीला दर्शायी गयी। 
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु बैकुंठ में विश्राम कर रहे थे। उसी समय 5 बाल ऋषियों का समूह भगवान से विष्णु से मिलने आया, जिसपर उनके द्वारपाल जय और विजय ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। इस पर क्रोधित ऋषि- मुनियों ने दोनों को श्राप दिया कि तुम दोनों जन्म- जन्मान्तर तक राक्षस योनि में ही पैदा होंगे। इसके बाद उन दोनों की विनती से तीन जन्मों के बाद भगवान विष्णु के हाथों उद्धार की बात ऋषियों ने कही।
लीला में दिखाया गया है कि इन दोनों का जन्म हिरणाक्ष और हिरणकश्यप के रूप में हुआ, जिनके उत्पात से परेशान जनता और देवताओं ने भगवान विष्णु से आकाशवाणी के द्वारा मुक्ति दिलाने की बात कही। इस मौके पर काशी की जनता प्रह्लाद घाट पर जमी रही।
गंगा किनारे मंगलवार की रात खंभे से नरसिंह रूप में प्रकट हुए भगवान ने अत्याचार के प्रतीक हिरण्य कश्यप का वध किया। भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार होने के बाद गगनभेदी जयकारे गूंजने लगे और लोगों ने जमकर पुष्पवर्षा की। इस दौरान घाट से लेकर आसपास के मोहल्लों को भी बिजली की रंग-बिरंगी झालरों से सजाया गया था।
प्रह्लाद घाट पर लीला के तीसरे दिन हिरण्य कश्यप वध देखने के लिए आसपास के इलाके के दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी। घाट की सीढ़ियों पर बैठने की जगह नहीं थी। मंच पर हिरण्य कश्यप भगवान की भक्ति में लीन अपने पुत्र प्रह्लाद को तरह-तरह की यातनाएं देता है और दबाव बनाता है कि वह भगवान की बजाय उसका नाम लेना शुरू कर दे। हिरण्य कश्यप अंतत: प्रह्लाद को करीब 15 फीट ऊंचे खंभे से बांध देता है। वह पूछता है कि बताओ तुम्हारे भगवान कहां हैं? तुम्हारा वध होने से अब कौन बचाएगा? प्रह्लाद कहते हैं कि भगवान कण-कण में हैं। इस खंभे में भी भगवान हैं और वे मेरी रक्षा के लिए जरूर आएंगे। इसी दौरान आकाशवाणी होती है कि भक्त की जान खतरे में है, प्रभु बिना विलंब किए उसकी रक्षा करें। इसी के साथ खंभे से नरसिंह रूप में भगवान प्रगट हो जाते हैं। जयघोष के बीच हिरण्य कश्यप के पुतले का सीना फाड़कर नरसिंह भगवान उसका वध कर देते हैं। नरसिंह भगवान की भूमिका राहुल उपाध्याय ने की। हिरण्य कश्यप का किरदार बिल्लू साहनी ने और भक्त प्रह्लाद की भूमिका शशांक द्विवेदी ने निभाई। 
नरसिंह चतुर्दशी पर मंगलवार को प्रह्लाद घाट स्थित लक्ष्मी-नरसिंह मंदिर को भव्य सजाया गया। इस दौरान विग्रहों की झांकी भी सजाई गई। महंत दंडी स्वामी नारायणाचार्य महाराज ने भक्तों को आशीर्वाद दिया। भंडारे में सैकड़ों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया।

Friday, May 20, 2016

बुद्ध पूर्णिमा

वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं। यह गौतम बुद्ध की जयंती है और उनका निर्वाण दिवस भी। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है।
इसी कारण बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।

बुद्ध पूर्णिमा के समारोह व पूजा विधि
बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बुद्ध पूर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार का दिन होता है। इस दिन अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किए गए हैं। अलग-अलग देशों में वहाँ के रीति- रिवाजों और संस्कृति के अनुसार समारोह आयोजित होते हैं।
- श्रीलंकाई इस दिन को 'वेसाक' उत्सव के रूप में मनाते हैं जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है।
- इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है।
- दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं।
- बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है।
- मंदिरों व घरों में अगरबत्ती लगाई जाती है। मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाए जाते हैं और दीपक जलाकर पूजा की जाती है।
- बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन पताकाएँ सजाई जाती हैं। जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है। वृक्ष के आसपास दीपक जलाए जाते हैं।
- इस दिन मांसाहार का परहेज होता है क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा के विरोधी थे।
- इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है।
- पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है।
- गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं।
- दिल्ली संग्रहालय इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर निकालता है जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।


शिवली वियतनामी मंदिर

शिवली वियतनामी मंदिर में बुद्ध की ७० फुट ऊँची भव्य प्रतिमा विशेष आकर्षण है। इसकी स्थापना दिसंबर २०१४ में हुई थी। चुनार के प्रसिद्ध मूर्तिकार देव नारायण पुजारी द्वारा निर्मित इस प्रतिमा को बनाने में ४८ महीने लगे थे। चुनार के पत्थरों से बनाई गई इस प्रतिमा के नीचे विशाल धम्मा हाल है। धम्म हाल की बाहरी दीवारों पर हिन्दी, अंग्रेजी, पाली और वियतनामी भाषा में धम्म चक्र परिवर्तन सूत्र लिखा गया है। इसके अलावा पाँच बौद्ध भिक्षुओं की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। धम्म हाल के बाहर भारतीय शैली में तोरण द्वार और प्रवेश व निकास द्वारों के चारों कोनों पर सिंह शीर्ष बनाए गए हैं। प्रांगण में एक पगोडा रखा गया जो वियतनाम से आया है। अष्टधातु से बने इस पगोडा का वजन छह क्विंटल है। ४५ बिस्वा में फैले परिसर में ध्यान कक्ष, विश्राम स्थल व कई कमरे हैं।


Monday, May 9, 2016

Trilochan Mahadev Temple

Unfathomable is the biggest honor of Lord Shiva. Various forms of Shiva devotees fail to enthrall a very naive manner. Cannabis, Datura and cremation ashes and neck beads snake is the ogre format. That Shiva lingam as spontaneous as his worshipers become available. Anand Kannan Siva Kashi ever most beloved being on earth. There are many Shiva in Kashi. Trilochan Mahadev is also important in self Shivlingon. Trilochan Mahadev Temple is located in Varanasi, Jaunpur border trilochan Mahadev market. According to Skanda Purana when Yogyukt Dewadidev Shiva Mahadev trilochan when he was sitting on seven Patalon bore holes. According to the Skanda Purana, Lord Shiva tells Parvati that Shiva shrines enjoy trilochan in-law and Shivlingon are superior. The uniqueness of this temple is that the Shiva lingam of Shiva trilochan bulging shape that is not one but two. Often the faithful do not see these shapes. Arge large wreath of flowers on the Shivling inside keeps up. Cooper in shape to see the Kindle has Arge. This lingam is tilted toward the north rather straight forward. Bending toward the north behind Shiva lingam a legend when it appeared that the two villages was mooted that the lingam in Rehti and Lhngpur whom are in the village. Lingam was peaking over the border issue were both villages people face to face. Meanwhile, one night it was lean towards Shivling north Rehti village. Thus ended the border dispute, the two villages have accepted that it is born in the village Rehti Shivling. Another man was recognized that forests in this area before. Far from where the villagers brought grazing. When the cows are grazing on the lingam, their milk, it would have been like a drink. This information led to the shepherds at that place, they beat with a stick sticks. At the same time the village had a dream in the night that the landlord is in place Shivling. When he got to a place that lingam landlords have made excavation. A recognition that when Lord Shiva and Brahma accused roamed from everywhere come here on arrival They could not blame God. The Shiva roamed were quite tired. I was also with Parvati. Shiva said to bring her water. Manikarnika Parvati moved in search of water. Here, take the water of Parvati lost ear-disc. After a long time, even when the water is returned to them when looking for Parvati, Lord Shiva arrived at Manikarnika Ghat. Trilochan Mahadev temple pond in front of the drug with properties is flabby. Recognize that the pond water source is mixed with the confluence of Gomti and Sai, which is not the pond never dries. Recognize that cornered the bright half of the tritiya who bathe in the pond while fasting and night prayer Trilochan Mahadev will Liturgy of the Lord Shiva appeared before them will be councilor. Hence, the day thousands of devotees bathe in the pond water are offered to Lord Shiva. The pond is filled with medicinal. The baths are covered with leprosy and epilepsy. Suppose that the point of the temple, the temple is in a high dome. From time to time by local devotees of the temple construction, reconstruction work has been carried out. The temple complex was also built large halls. Pan on the faithful to offer the use of different occasions. The most beloved of Lord Shiva in the month of Sawan is a different hue. The temple complex and its surroundings, with views of natural greenery is. The whole month is carnival-like atmosphere. Trilochan Mahadeo Liturgy of the faithful from far and wide come to see. The batch of Kanvrion in this temple Baba Sawan on the water is present. Also on Monday, the men, women Sawan large number of devotees visit the temple-worship are visited Baba. Water on the occasion of Maha Shivaratri is crowded Aprnpar to offer. Long queues of devotees too long. Order to offer the water from dawn until midnight on. Sage is also used to make up this day. Trilochan Mahadeo another celebration at the court in which the fair is held for one month. It takes three years for the opportunity Purushottam Mas (epact) comes in. Throughout this month, reaching a large number of devotees visit the temple-worship. The fair is held during the month. It is believed that on this occasion to worship Baba's philosophy, all the troubles and get pleasure property. Baba is up in a year twice. Regular morning for devotees, the temple is open from 4 pm to 9 pm nightly. 4 AM and sleep with the opening ritual temple aarti is performed 9pm. Omkar Sanjay fell down and the priest of the temple. About 30 km from Varanasi, Jaunpur, Varanasi is located in the east on the route trilochan market. Varanasi, the temple can be reached easily by bus.