Tuesday, April 12, 2016

त्रिलोचन महादेव मन्दिर

भगवान शिव की महिमा भी बड़ी न्यारी है। विभिन्न रूपों में शिव जी अपने भक्तों का बड़े ही भोले अंदाज में मन मोह लेते हैं। भांग, धतूरा और श्मशान की राख और गले में सर्प की माला उन्हें औघड़ स्वरूप देती है। यही कारण है कि शिवलिंग के रूप में भगवान शिव सहज भाव से ही अपने भक्तों को उपलब्ध हो जाते हैं। कभी आनंद कानन रही काशी भगवान शिव को पृथ्वी पर सबसे अधिक प्यारी रही। काशी में अनेकों शिवलिंग हैं। स्वयंभू शिवलिंगों में त्रिलोचन महादेव का भी महत्वपूर्ण स्थान है। त्रिलोचन महादेव का मंदिर वाराणसी-जौनपुर सीमा पर त्रिलोचन महादेव बाजार में स्थित है। स्कंद पुराण के अनुसार देवादिदेव शिव जब योगयुक्त होकर बैठे हुए थे तभी त्रिलोचन महादेव सात पातालों को छेद कर उत्पन्न हुए। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव पार्वती जी से कहते हैं कि सब तीर्थों में आनंद-कानन और शिवलिंगों में त्रिलोचन महादेव श्रेष्ठ हैं। इस मंदिर की खासियत यह है कि त्रिलोचन महादेव के शिवलिंग पर भगवान शिव की आकृति उभरी हुई है वह भी एक नहीं बल्कि दो। प्रायः श्रद्धालु इन आकृतियों को देख नहीं पाते। क्योंकि बड़े से अर्घे के भीतर स्थित शिवलिंग पर माला फूल चढ़ा रहता है। आकृति को देखने के लिए अर्घे के भीतर कूपर जलाना पड़ता है। यह शिवलिंग सीधा न होकर उत्तर दिशा की ओर झुका हुआ है। उत्तर दिशा की ओर शिवलिंग झुकने के पीछे एक किवदंती है कि जब यह शिवलिंग प्रकट हुए तो दो गांव रेहटी व लहंगपुर में विवाद उत्पन्न हो गया कि यह शिवलिंग किसके गांव में हैं। शिवलिंग को लेकर सीमा विवाद बढ़ता जा रहा था दोनों गांवों के लोग आमने-सामने थे। इसी बीच एक रात्रि यह शिवलिंग उत्तर दिशा रेहटी गांव की ओर झुक गया। इस तरह सीमा विवाद समाप्त हुआ और दोनों गांवों ने यह मान लिया कि यह शिवलिंग रेहटी गांव में उत्पन्न हुआ है। एक और जन मान्यता है कि पहले इस क्षेत्र में जंगल हुआ करता था। जहां दूर-दूर से गांव वाले पशुओं को चराने लाते थे। जहां पर शिवलिंग हैं वहां जब भी गायें चरते हुए जातीं तो उनका दूध ऐसा लगता जैसे कोई पी गया है। इस बात की जानकारी जब चरवाहों को हुई तो वे उस जगह पर लाठी डंडे से पीटने लगे। उसी समय गांव के जमींदार को रात्रि में स्वप्न आया कि उक्त स्थान पर शिवलिंग है। जमींदार ने जब उस स्थान पर खुदाई करायी तो शिवलिंग मिला। एक और मान्यता है कि जब भगवान शिव को ब्रह्म दोष लगा तो सब जगह घूमते-घूमते यहां आये यहां आने पर ब्रह्म दोष इनके पास नहीं आ सका। इस दौरान शिव जी घूमते-घूमते काफी थक गये थे। साथ में पार्वती जी भी थीं। शिव जी ने उनसे पानी लाने के लिए कहा। पानी की खोज में पार्वती जी मणिकर्णिका आ गयीं। यहां पर पानी लेने में पार्वती जी का कर्ण कुण्डल कहीं खो गया। काफी देर बीत जाने के बाद भी जब पार्वती जी पानी लेकर नहीं लौटे तब उन्हें ढूंढते हुए भगवान शिव मणिकर्णिका घाट पर पहुंचे। त्रिलोचन महादेव मंदिर के ठीक सामने औषधि गुणों से युक्त पिलपिला तालाब भी है। मान्यता है कि इस तालाब का जल स्रोत गोमती और सई नदी के संगम से मिला हुआ है, जिससे इस तालाब का पानी कभी सूखता नहीं है। मान्यता है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को जो भी इस तालाब में स्नान करके उपवास एवं रात्रि जागरण करते हुए त्रिलोचन महादेव का दर्शन-पूजन करेगा वह भगवान शिव का पार्षद होगा और उनके आगे चलेगा। इसी वजह से इस दिन काफी संख्या में श्रद्धालु इस तालाब में स्नान कर भगवान शिव को जल चढ़ाते हैं। यह तालाब औषधि गुणों से भी परिपूर्ण है। इसमें स्नान से कुष्ठ एवं मिर्गी रोग में लाभ मिलता है। मंदिर निर्माण की बात की जाय तो इस मंदिर का गुम्बद काफी उंचा है। समय-समय पर स्थानीय श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर का निर्माण, पुनर्निर्माण का कार्य किया जाता रहा है। मंदिर परिसर में बड़े हालों का भी निर्माण कराया गया है। जिसमें श्रद्धालु विभिन्न अवसरों पर कड़ाही चढ़ाने के लिये प्रयोग करते हैं। भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना सावन में यहां अलग ही छटा रहती है। मंदिर परिसर और उसके आसपास का नजारा प्राकृतिक रूप से हरियाली युक्त हो जाता है। पूरे माह मेले जैसा माहौल रहता है। दूर-दूर से श्रद्धालु त्रिलोचन महादेव का दर्शन-पूजन करने आते हैं। वहीं, कांवरियों का जत्था भी इस मंदिर में सावन भर बाबा पर जल अर्पित करता है। सावन के सोमवार को तो पुरष श्रद्धालुओं के अलावा महिलाएं काफी संख्या में मंदिर पहुंचकर बाबा का दर्शन-पूजन करती हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर जल चढ़ाने के लिए अपरंपार भीड़ होती है। श्रद्धालुओं की कतारें ज्यादा लम्बी होती हैं। भोर से ही जल चढ़ाने का क्रम आधी रात तक जारी रहता है। इस दिन बाबा का श्रृंगार भी किया जाता है। एक और उत्सव जिसमें त्रिलोचन महादेव के दरबार में पूरे एक माह तक मेला लगा रहता है। यह अवसर तीन वर्ष में लगने वाले पुरूषोत्तम मास (मलमास) में आता है। इस पूरे महीने काफी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचकर दर्शन-पूजन करते हैं। इस दौरान पूरे माह मेला लगा रहता है। ऐसी मान्यता है कि इस अवसर पर बाबा का दर्शन-पूजन करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और सुख सम्पत्ति मिलती है। वर्ष में बाबा का दो बार श्रृंगार किया जाता है। नियमित रूप से श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर प्रातः 4 बजे से रात्रि 9 बजे तक खुला रहता है। आरती मंदिर खुलने के साथ प्रातः 4 बजे और शयन आरती रात्रि 9 बजे सम्पन्न होती है। इस मंदिर के पुजारी ओमकार गिरी और संजय गिरी हैं। वाराणसी से करीब 30 किलोमीटर दूर वाराणसी जौनपुर मार्ग पर त्रिलोचन बाजार के पूर्व में स्थित है। वाराणसी से बस द्वारा आसानी से इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।









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