Tuesday, April 12, 2016

नौ दुर्गा

हिन्दुओं में अन्य देवी-देवताओ के साथ जगत-जननी माँ दुर्गा के प्रति असीम आस्था एवं भक्ति है। नवरात्र में नवों दिन लोग माँ दुर्गा की पूजा अर्चना करते हैं। वैसे भारत में नवरात्र पश्चिम बंगाल खासकर कलकत्ता में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है लेकिन उत्तर भारत में भी लोग नवरात्र को काफी श्रद्धा भाव से मनाते हैं। इस दौरान नवरात्र के नौ दिन अलग-अलग रूपों में माँ दुर्गा की पूजा की जाती है। काशी में नौ दुर्गा का अलग-अलग स्थान है। शारदीय नवरात्र में माँ के इन रूपों को पूजा होती है। 
1) शैलपुत्री– नवरात्र के पहले दिन (प्रथमा) को माँ दुर्गा को शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। शैलपुत्री दर्शन से भक्तों के सारे दुःख, पाप कट जाते हैं। इनकी कृपा होने पर धन संपदा और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इन्हें माँ दुर्गा के शक्ति रूप में भी माना जाता है। माँ शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल रहता है। काशी में शैलपुत्री माता का मंदिर अलईपुर मुहल्ले में A 40/11, शैलपुत्री भवन में है नवरात्र के पहले दिन यहाँ दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है।
2) ब्रह्मचारिणी– नवरात्र के दूसरे दिन (द्वितीया) को माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। भक्तों का मानना है कि इनके दर्शन मात्र से रोगों से मुक्ति मिल जाती है और भक्त बलवान व शक्तिशाली हो जाता है। साथ ही इनकी कृपा होने पर हमेशा सफलता मिलती है। इनका पवित्र मंदिर 22/17 दुर्गाघाट मुहल्ले में स्थित है। भक्त दुर्गाघाट में स्नान कर इनका दर्शन करते हैं।
3) चन्द्रघण्टा– नवरात्र के तीसरे दिन (तृतीया) को माँ दुर्गा के चन्द्रघण्टा रूप की पूजा होती है। इस रूप को चित्रघण्टा भी कहा जाता है। भक्तों में मान्यता है कि माँ के इस रूप के दर्शन पूजन से नरक से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही सुख, समृद्धि, विद्या, सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। इनके माथे पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र बना है। माँ सिंह वाहिनी हैं। इनकी दस भुजाएँ है। माँ के एक हाथ में कमण्डल भी है। इनका भव्य मंदिर CK 33/35 चौक मुहल्ले में स्थित है। नवरात्र में माँ के भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
4) कुष्माण्डा– माँ दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। नवरात्र के चौथे दिन (चतुर्थी) को माता के इसी रूप की पूजा विधि विधान से होती है। माँ के इस रूप के दर्शन-पूजन से सारी बाधा, विध्न और दुखों से छुटकारा मिलता है। साथ ही भवसागर की दुर्गति को भी नहीं भोगना पड़ता है। माँ की आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है। मां कुष्माण्डा विश्व की पालनकर्ता के रूप में भी जानी जाती हैं। इनका मंदिर D 27/2 दुर्गाकुण्ड मुहल्ले में स्थित है।
5) स्कन्दमाता– नवरात्र के पांचवें दिन (पंचमी) को माँ दुर्गा के स्कन्द माता रूप की पूजा होती है। स्कन्द कार्तिकेय का एक नाम है। इनका दर्शन-पूजन करने से सभी दुखों से छुटकारा मिल जाता है। साथ ही भक्त ओजस्वी और तेजस्वी होते हैं। माना जाता है कि स्कन्द माता नगरवासियों की रक्षा करती हैं। स्कन्द माता सिंह वाहिनी हैं। इनकी चार भुजाएँ हैं। दाहिने भुजा में स्कन्द कार्तिकेय को अपनी गोंद में पकड़ी हुए हैं। नीचे भुजा में कमल पुष्प धारण की हैं। बायीं ओर एक हाथ वरद मुद्रा में है तो दूसरी भुजा में कमल फूल पकड़े हुए हैं। स्कन्द माता का मंदिर J 6/33, जैतपुरा मुहल्ले में स्थित है।
6) कात्यायनी माता– नवरात्र के छठें दिन (षष्ठी) को भक्त माँ के कात्यायनी माता का दर्शन-पूजन करते हैं। मान्यता है कि कात्यायन ऋषि के आश्रम में उनके तप से माता ने दर्शन दिया था। इसीलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। माँ के इस रूप का पूजन-अर्चन करने से भक्तों के पाप का नाश होता है। साथ ही माँ आत्मज्ञान प्रदान करती हैं। काशी के अलावा वृन्दावन में भी माता अधिष्ठात्री देवी हैं। माना जाता है कि भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए गोपियों ने कात्यायनी व्रत रखा था। इनका रूप सोने जैसा है। माँ चतुभुर्जा हैं और इनका वाहन सिंह है। कात्यायनी माता का मंदिर CK 7/158 सिन्धिया घाट मुहल्ले में है। नवरात्र में इस मंदिर में  काफी संख्या में भक्त आते हैं।
7) कालरात्रि– नवरात्र के सातवें दिन (सप्तमी) को माता कालरात्रि की पूजा होती है। भक्तों में आस्था है कि उनके दर्शन-पूजन से अकाल मृत्यु नहीं होती है। साथ ही भक्तों की सारी कामनाएँ पूरी हो जाती है। माँ कालरात्रि भक्तों को सुख देने के साथ मोक्ष भी प्रदान करती हैं। माँ कालरात्रि का रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हैं। गले की माला बिजली की तरह चमकती है। इनके तीन नेत्र हैं। इनके श्वास से अग्नि की ज्वालाएँ निकलती हैं। माँ का वाहन गर्दभ है। इनका मंदिर D 8/3 कालिका गली में स्थित है।
8) महागौरी– नवरात्र के आठवें दिन (अष्टमी) को माँ दुर्गा के महागौरी रूप की पूजा होती है। यह रूप काशी की अधिष्ठात्री देवी माता अन्नपूर्णा भी हैं। इनके दर्शन पूजन करने से भक्त कभी दरिद्र नहीं होते। भक्तों पर माँ की असीम अनुकम्पा हमेशा रहती है। जिससे धन संपदा और अन्न की प्राप्ति होती है। महागौरी हमेशा काशी वासियों का कल्याण करती हैं। इनकी कृपा से काशीवासी कभी भूखे नहीं रहते। माँ का रूप पूरी तरह से गौर है माँ की सवारी वृषभ है। इनकी चार भुजाएं हैं। इनकी मुद्रा शांत और सौम्य है। इनके दर्शन के लिए भक्तों की जमकर भीड़ होती है। यह मंदिर अन्नपूर्णा मंदिर में स्थित है।
9) सिद्धिदात्री माता– नवरात्र के नौवें (नवमी) को व अंतिम दिन सिद्धिदात्री माँ की पूजा आराधना होती है। इनके दर्शन-पूजन से कलह का शमन होता है। माँ सबकी रक्षा करने के साथ सिद्धि प्रदान करती हैं। माँ के प्रसन्न होने पर भक्तों को आठों सिद्धि मिल जाती है। आठों सिद्धियाँ इस प्रकार है। अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वाशित्व। इनका वाहन भी सिंह है और इन्हें चार भुजाएं हैं। माँ सिद्धिदात्री का मंदिर CK 6/28 बुलानाला में स्थित है।


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