Wednesday, November 25, 2015

आकाश दीप

शहीद होने वाले लोगों को देश बड़ी कृतज्ञता के साथ हमेशा याद करता रहा है, लेकिन वाराणसी में कार्तिक महीने के पहले दिन उनकी आत्मा की शांति और सम्मान के लिए आकाश दीप जलाने की परंपरा है। खास बात यह है कि इस परंपरा को सेना के तीनों अंगों के जवान निभाते हैं। कारगिल विजय वर्ष से आरम्भ हुए इस कार्यक्रम में बांस की टोकरियों में दीपक रखकर आसमान की तरफ कार्तिक मास की अंतिम तारीख तक रोज़ शाम को लटकाये जाते हैं।
वाराणसी के दशाश्वमेघ घाट पर सेना के जवान उस परंपरा को निभाने के लिए हर साल कार्तिक मास के पहले दिन इकट्ठा होते हैं। इसकी पौराणिकता महाभारत काल से जुड़ी हुई है। महाभारत काल में पांडवों ने महाभारत युद्ध में मारे गए शहीदों की आत्मा की शांति के लिए दीप दान शुरू किया था। क्योंकि मान्यता है कि कार्तिक मास के पवित्र महीने में मृत पूर्वजों के नाम से यदि प्रतिदिन दीप जलाए जाएं तो उन्हें न सिर्फ शांति मिलेगी बल्कि मोक्ष भी मिलेगा।
वाराणसी में सेना के जवान उसी परंपरा के तहत देश में पूरे साल में शहीद हुए जवानों की आत्मा की शांति के लिए श्रद्धापूर्वक दीप जलाते हैं, ताकि उन्हें भी शांति और मोक्ष मिले। आस्था, श्रद्धा और राष्ट्रभक्ति का यह मेल वाराणसी की एक स्वयं सेवी संस्था के प्रयास से संभव हो पाता है। इसमें सेना के तीनों अंगों के जवान भी भाग लेते हैं।
जोशीले बैंड बाजे और राष्ट्रगान के साथ जब जवान तिरंगे को सलामी देते हैं तो गंगा के किनारे देशभक्ति की एक और धारा फूट पड़ती है। सेना के जवान दीप जलाकर उसे आकाश में पहुंचा देते हैं। और उन्हें याद करते हैं जिन्होंने देश के लिए अपने जान की परवाह नहीं की।
शहीदों के सम्मान में जलाए गए ये दीप पूरे कार्तिक महीनेभर जलेंगे। जिसमें सेना के जवान प्रतिदिन शाम होने से पहले इस दीए को खुद ही रोशन करेंगे। आस्था और परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए इस पुनीत कार्य में थल सेना, वायु सेना और जल सेना के अलावा सीआरपीएफ के साथ आईटीबीपी और पुलिस के जवान भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन अंतिम सलामी देकर सेना के तीनों अंगों के अफसरान अमर जवान ज्योति के ऊपर श्रद्धा सुमन अर्पित करके इसका समापन करेंगे।





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