तीन दिवसीय रथयात्रा मेले की तैयारियां शुरू हो गयी है। काशी के लक्खी मेला 17 जुलाई से शुरू होगा।
रथयात्रा चैराहे के समीप रथ स्थल पर मेंले में प्रयुक्त होने वाले अष्टकोणीय रथ की साफ सफाई के साथ रंग रोगन करने के लिए शुक्रवार को कारीगर और मजदूर लगे रहे।
उधर अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर में जुखाम से पीडि़त प्रभु जगन्नाथ अपने शयन कक्ष में आराम और स्वास्थ्य लाभ ले रहे है। मंदिर के प्रधान पुजारी के देखरेख में जुखाम से पीडि़त प्रभु को प्रतिदिन काढ़ा का भोग चढ़ाया जा रहा है। इस बार अधिकमास के कारण डेढ़ माह के लिए बीमार पड़े प्रभु को स्वास्य होने के लिए अंतिम औषधी के रूप में 16 जुलाई को ‘‘परवल का जूस’ चढ़ाया जायेगा। और इसी दिन गोधूली बेला में प्रभु डोली पर सवार होकर भक्तों की अगवानी में रथयात्रा स्थित बेनीराम बाग पहुंचेंगे, जहां विश्राम के बाद रात्रि तीसरे पहर में रथारूढ़ होंगे। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि, 17 जुलाई को भगवान जगन्नाथ बहन सुभद्र और भाई बलभद्र संग रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण को निकलेंगे।
मंदिर के प्रवक्ता सुनील त्रिपाठी के अनुसार भक्तो के प्रेम और जलाभिषेक से बीमार जगत के नाथ अपने शयनकक्ष में स्वास्य लाभ के लिए आराम कर रहे हैं। इस बार भक्तों को अपने भगवान नए कलेवर में दर्शन देंगे। बताया कि प्रभु जगन्नाथ के विग्रह को भोग के रूप में प्रतिदिन लगने वाले काढ़े में नौ प्रकार की सामग्री का मिश्रण है। काली मिर्च, लौंग, छोटी-बड़ी इलाइची, जायफल, तुलसी का पत्ता, चन्दन, चीनी, गुलाब जल और गंगाजल के मिश्रण से काढ़ा बनाया जाता है। इसी काढ़े को भगवान को चढ़ाया जाता है।
श्री त्रिपाठी ने बताया कि उनकी सेहत में सुधार के लिए अस्सी स्थित मंदिर में आस्थावान नागरिक जुटते है और उनके स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते है। बताया कि इस बार ससुराल में बाबा जगन्नाथ की खातिरदारी लंगड़ा आम और मगही पान से होगी।
भगवान जगन्नाथ के सपरिवार तीन दिनी सैर पर निकलने के लिए 14 पहिये वाला रथ सजाया जा रहा है।
बतादे,काशी के इस लक्खा मेले में रथयात्रा क्षेत्र में दो किमी से अधिक दूरी तक सड़क की दोनों पटरियों पर नानखटाई की दुकानों के साथ ही खिलौनों और शृंगार की वस्तुओं का बाजार गुलजार होगा।
विश्वप्रसिद्ध मेले की कहानी
बाबा विश्वनाथ की नगरी में रथयात्रा मेला 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुरी के तत्कालीन राजा और जगन्नाथ मंदिर के महंत के बीच पैदा हुए मतभेद के चलते हुआ था।
ट्रस्ट श्री जगन्नाथ जी के सचिव आलोक शापुरी ने बताया कि उस दौर में पं. बेनीराम भोसला स्टेट के प्रधानमंत्री थे और उनके भाई विशंभर नाथ पुरी स्टेट के। पुरी में उस समय ब्रह्मचारी नित्यानंद जगन्नाथ मंदिर के महंत थे। पुरी के महाराज के बीच किसी बात को लेकर मतभेद हो गया था। इससे नाराज होकर महंत नित्यानंद ने पुरी छोड़ दी और काशी आ गए थे। तत्कालीन महंत सिर्फ पुरी का ही भोग ग्रहण करते थे। इस वजह से जब वो काशी आए तो वहां के राजा ने व्यवस्था की कि पुरी से महंत के लिए नियमित भोग आता रहे लेकिन इसमें कठिनाई आने लगी। अंततरू जब इस बात की जानकारी पं. बेनीराम को हुई तो उन्होंने 1790 में अस्सी मोहल्ले में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करा दिया। 1802 में बेनीराम के बगीचे से रथयात्रा मेला आरंभ हुआ। पुरी में भी स्नान के बाद भगवान बीमार पड़ते हैं तो ससुराल जाते हैं। यहां भी ससुराल के रूप में बेनीराम के बगीचे में जाते हैं और मेला लग जाता है।
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