Tuesday, August 7, 2018

वाराणसी के शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर की यह है मान्यता...

काशी के दक्षिण में माधोपुर गांव में गंगा तट किनारे स्थित शूलटंकेश्वर महादेव के मंदिर में भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। सावन के मौके पर तो यहां हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। दूर-दूर से आकर भक्त प्रसाद चढ़ाते हैं और अपनी मुराद पूरी होने की दुआ मांगते हैं।
काशी के दक्षिण में बसा यह इलाका इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि गंगा ने इसी शूलटंकेश्वर मंदिर के पास के घाटों से उत्तरवाहिनी होकर काशी में प्रवेश किया था। इस मंदिर में भक्तों का तांता हमेशा लगा रहता है। मंदिर के पुजारी पंडित राजेंद्र गिरी बताते हैं कि इस मंदिर का नाम पहले माधवेश्वर महादेव था। आइए जानते हैं कि इस मंदिर की स्थापना कब और कैसे हुई? 
गंगा अवतरण के वक्त प्रकट हुए शिव कहते हैं जब भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा धरती पर आईं। उनको काशी से होकर गुजरना था तब भगवान शंकर ने इसी स्थान पर अपना त्रिशूल फेंक कर गंगा की धारा की दिशा बदल दी थी। साथ ही पुराणों में वर्णित है कि मां गंगा जब तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही थीं तब भोले को अपनी प्रिय नगरी काशी के नुकसान का अंदेशा हुआ था। इसीलिए वो प्रकट हुए और त्रिशूल से गंगा की तेज धारा को रोक दिया। 
शिव ने लिया था मां गंगा से वचन कहते हैं कि गंगा की धारा रोके जाने पर मां गंगा कष्ट में आकर भगवान शिव से छोड़ने का आग्रह करने लगी। इस पर भगवान शिव ने मां गंगा से यह वचन लिया था कि वह काशी को स्पर्श करते हुए प्रवाहित होंगी। साथ ही काशी में गंगा स्नान करने वाले किसी भी भक्त को कोई हानि नहीं पहुंचाएंगी। गंगा ने जब दोनों वचन स्वीकार कर लिए तब भगवान शिव ने अपना त्रिशूल वापस खींचा और मां गंगा का प्रवाह शुरु हो गया।
तभी से गंगा यहां से उत्तरवाहिनी होकर काशी से गुजरीं। उसी वक्त ऋषि-मुनियों ने इस शिवलिंग का नाम शूलटंकेश्वर रख दिया था। इसके पीछे धारणा यह थी कि जिस प्रकार यहां गंगा का कष्ट दूर हुआ उसी प्रकार अन्य भक्तों का कष्ट भी दूर हो। यही वजह है कि पूरे साल यहां भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है।




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