काशी के अर्द्धचंद्राकार घाटों के अंतिम छोर पर स्थित खिड़किया घाट को प्रशासन ने नमो घाट के रूप में नया कलेवर दे दिया है। यहां पहले से ही 25-25 फीट के तीन स्कल्पचर स्थापित हैं और यहां आने वाले पर्यटकों के बीच सबसे पसंदीदा हैं। 35.83 करोड़ रुपये की लागत से नमो घाट के पहले चरण का काम हुआ है। यहां पर नमस्ते करते हुए तीन स्कल्पचर तैयार कराए गए हैं। पर्यटन के लिहाज से अपने आप में अनूठा है। यहां पर्यटक सुबह-ए-बनारस का नजारा देख सकेंगे। साथ ही गंगा आरती में भी शामिल हो सकेंगे। वाटर एडवेंचर स्पोर्ट्स का मजा भी ले सकेंगे।
Friday, July 21, 2023
Namo Ghat
The renovated ‘Khidkiya ghat’, popularly known as ‘Namo ghat’ because of three large sculptures in the form of hands folded in ‘namaste’,The ₹34-crore project which is nearing completion, will become the 85th ghat in Varanasi.“It is in sync with modernity while the traditional ethos has been maintained,” the official said. The ghat is equipped with state-of-the-art facilities for the tourists. A cafeteria, platforms, paintings on the walls showcasing heritage of Kashi are there. The ghat will help decongest Dashashwamedh Ghat, he said.The sculptures of folded hands greeting the sun had become the new identity of the ghat. The two statues, one 25-feet-tall and another smaller one 15-feet-tall, were salutation to the Ganga.
पंचक्रोशी यात्रा
काशी में अनेक शिवभक्त काशी नगरी की पंचक्रोशी यात्रा करने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं, परन्तु उन्हें ज्ञात नहीं कि......
......................काशी की पंचक्रोशी यात्रा को विधि नियम से मात्र भगवान शिव, माता पार्वती अन्नपूर्णा जी, श्री ढुंढीराज जी, भगवान राम, माता सीता और भगवान श्रीकृष्ण ही कर सके है, या कुछ ऋषि मुनि साधु सन्त विद्वान् मनुष्य....
शेष हम जैसे मनुष्य की कल्पना ही है काशी की पंचक्रोशी यात्रा करना... #ॐविश्वेश्वरायनमः
#श्री_ढुंढीराज कृपा से काशीखण्ड,ब्रह्म,काशीरहस्य मत्स्यपुराण कूर्मपुराण, विष्णुपुराण, शिवरहस्य एवं कुबेर नाथ शुक्ल जी की और ज्ञानवापी के धर्म योद्धा स्व.श्री प.केदारनाथ व्यास जी की पुस्तक में वर्णित पौराणिक पंचक्रोशी यात्रा के विधि नियम को जाने।
पंचकोशी यात्रा पौराणिक विधि सुदीर्घ होने से कई खण्डों में इसे आप तक पहुँचने का प्रयास करूँगा----
#पार्वतीजी ने हाथ जोड़ कर शिवजी से प्रश्न किया कि--
#हे_काशीनाथ ! ममनाथ त्रिपुरारी। मैने आपके मुख से सुना है कि काशीकृत पाप का बड़ा भारी दुःख होता है, इस दुःख से मुक्ति के लिए कोई सुगम उपाय बताइये, जिसमें कलिकाल के मनुष्यों का उद्धार हो।
यह प्रश्न सुनकर श्री विश्वनाथ जी महाराज प्रसन्न होकर बोले हे सुन्दरी । तुमने इस कलिकाल के जीवों के उपकारार्थ बहुत ही अच्छा प्रश्न किया है। हे प्रिये। अब ध्यान देकर सुनो, मैं कहता हूँ -
अन्यक्षेत्रे कृतं पापं पुण्यक्षेत्रे विनश्यति ।
पुण्यक्षेत्रे कृतं पापं गङ्गातीरे विनश्यति ।।
गङ्गातीरे कृतं पापं काशीं प्राप्य विनश्यति ।
काश्यां तु यत्कृतं पापं वाराणस्यां विनश्यति ।।
वाराणस्यां कृतं पापमविमुक्ते विनश्यति ।
अविमुक्ते कृतं पापमन्तर्गेहे विनश्यति ।।
अन्तर्गेहे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ।
वज्रलेपच्छिदं ह्येतत्पञ्चक्रोशप्रदक्षिणम्।।
तस्मात्सर्वप्रयत्वेन कुर्यात् क्षेत्रप्रदक्षिणाम् ।
(ब्रह्मवैवर्तपुराणे)
मनुष्य ने किसी स्थान में पाप किये हों, वह पाप पुण्यक्षेत्र में छूट जाता है।
पुण्यक्षेत्र का पाप गंगा प्राप्त होने पर छूट जाता हैं। गंगातीर का पाप काशीपुरी में नष्ट हो जाता है। काशी का पाप उसके भीतर वाराणसी में नष्ट होता है,वाराणसी का पाप उसके भीतर अविमुक्त में नष्ट होता है। अविमुक्त का पाप उसके भीतर अन्तर्गृही यात्रा में छूटता है, अन्तर्गृही का पाप वज्रलेप होता है अर्थात पाप कर्ता को नहीं छोड़ता, लिप्त ही रहता है। इस वज्रलेप पाप को छेदन करने वाली पंचक्रोशी प्रदक्षिणा है। इसलिए सबको प्रयत्न से पंचक्रोशी प्रदक्षिणा करनी आवश्यक है।
दक्षिणे चोत्तरे चैव ह्ययने सर्वदा मया ।
क्रियते क्षेत्रदाक्षिण्यं भैरवस्य भयादपि ।।
( सनत्कुमार संहितायाम् )
अतएव हे सुन्दरी ! मै भी भैरव के भय से सदा सर्वदा दक्षिणायन तथा उत्तरायण दोनो अयनों में प्रदक्षिणा अर्थात पंचक्रोशी यात्रा करता हूँ।
कलावत्यन्तगोप्यानि भविष्यन्ति गिरीन्द्रजे ।
परं तेषां प्रभावो यः स स्वस्थानं न हास्यति ॥
(काशीखण्डे)
शंकरजी पार्वतीजी से कहते हैं --
हे पार्वती ! कलियुग में लिंग या तीर्थ प्रायः अत्यन्त गुप्त हो जायेंगे, परन्तु उनका जो विशेष प्रभाव है, वह अपने स्थान को नहीं छोड़ेंगे।
और अन्य शास्त्रों में भी कहा है कि “कलौ स्थानानि पूज्यन्ते” अतएव गुप्त हुई मूर्ति या तीर्थ के स्थान ही का दर्शन और पूजन करना चाहिए।
#पंचक्रोशीयात्रामहादेव_कहें-
आश्विन्यादिषु मासेषु त्रिषु पार्वति सर्वदा ।
प्रदक्षिणा प्रकर्तव्या, क्षेत्रस्यापापकांक्षिभिः ।। ६ ।।
माघादि चतुरो मासाः प्रोक्ता यात्राविधौ नृणाम् ।
(ब्रह्म-काशीरहस्य, अध्या० १०)
महादेव कहते है- हे पार्वति, आश्विन से तीन महीना तक 'कुवार, कार्तिक, अगहन' और माघ से चार महीने तक 'माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख' इन महीनों में पापों से छुटकारा पाने के लिए यात्रा करनी चाहिए।
#यात्राकहाँसेआरम्भकरें ?
काशीरहस्य में इस प्रकार लिखा है- पंचक्रोशीयात्रा मुक्तिमण्डप व्यासासन से आरम्भ होकर वहीं पर समाप्त होती है।
जो सज्जन यात्रा का संकल्प मणिकर्णिका ही पर लेकर यात्रा प्रारंभ कर देते है, उनकी यात्रा विधिहीन हो जाती है ।
क्योकि यात्रा का संकल्प ज्ञानवापी स्थित व्यासासन से होना चाहिए। ज्ञानवापी से कर्दमेश्वर- पहिला निवास स्थान ३ कोस है।
भीमचण्डी- दूसरा निवास स्थान ५ कोस है । कुल ८ कोस हुआ। रामेश्वर- तीसरा निवास स्थान ७ कोस, कुल १५ कोस हुआ। शिवपुर- चौथा निवास स्थान ४ कोस, कुल १६ कोस हुआ। कपिलधारा- पांचवा निवास स्थान ३ कोस, कुल २२ कोस हुआ। मणिकर्णिका ३ कोस, कुल २५ कोस की इस रीति से यह पंचक्रोशी यात्रा होती है।
इसमें मणिकर्णिका से अस्सी संगम और वरुणा संगम से मणिकर्णिका तक गंगा के तीरे तीरे जाना पड़ता है। बरसात में लोग नाव से जाते है। बाकी सब कच्ची सड़क है। जिसपर दाहिनी ओर दर्शनीय देवताओं के सुन्दर मन्दिर प्रत्येक निवास स्थान की जगह पर विशाल धर्मशालाएं, मनोहर जलवाले सरोवर तथा अगाध जलराशि वाले कूप दोनो तरफ सघन पल्लवित वृक्षों की पंक्तियों से सड़क सुशोभित हैं। बड़े बड़े विद्वान, राजा-महाराजा, धर्मात्मा, साहूकार, विद्यार्थि, स्त्री-पुरुष अपने-अपने किये पापों के प्रायश्चित्त के निमित्त यात्रा करते है।
#क्षेत्रसंन्यासीविशेष
भगवन् सर्वभूतेश कृपापूरितविग्रह ।
कृतार्थानां वद विभो क्षेत्रसंन्यासिनामपि ॥ 1
प्रदक्षिणाक्रमं क्षेत्राद्वहिर्वा मध्यतोऽपि वा ।
नियमस्य न भङ्गः स्याद् यथा पापं च नश्यतु ॥2
(काशीरहस्य, अ० ११)
हे भगवान्, हे कृपालो, क्षेत्र में रहने वाले संन्यासियों के लिए प्रदक्षिणा का क्रम क्षेत्र के बाहर से या भीतर से है ? हे भूतेश, जिसमें पाप का नाश हो जाय और नियम भंग न हो, यह कृपापूर्वक बताइए ।
श्री भगवानुवाच-
सम्यक् पृष्टं त्वया देवि महा ऽहंकारनाशनम् ।
प्रायश्चित्तं न्यासिनां हि क्षेत्राघौघविनाशनम् ॥ 3 ॥
क्षेत्र के पाप का तथा महाहंकार का नाश करने वाला संन्यासियों का प्रायश्चित तुमने बहुत अच्छा पूछा।
विधिस्तु पूर्वमेवोक्तो नियमादियुतस्तव ।
प्रदक्षिणात्रयं तेषामवधारय सुव्रते ॥ 4
विधि तो नियम के साथ पहिले ही कह चुके। तीन प्रदक्षिणा उनको अवश्य करनी चाहिए। अधिक करें तो और अच्छा लेकिन तीन से कम न हों।
#यात्रामेंसवारीकानियम
कथयिष्यामि ते राजन् तीर्थयात्राविधिक्रमम् ।
आर्येणैव विधानेन यथा दृष्टं यथा श्रुतम् ॥ 5
(मत्स्यपुराणे, अ० १०५)
मार्कण्डेय जी का वचन है कि ऋषियों से जैसा सुना है और देखा है वह तीर्थ का विधिक्रम कहता हूं।
पंचक्रोश्याश्च सीमानं प्राप्य देवो जनार्दनः ।
वैनतेयादवारुह्य करे धृत्त्वा ध्रुवं ततः ।।
112 (का० ख० अ० २१)
जब विष्णु भगवान् काशी की यात्रा में आते है, तब गरुड़ को काशी की सीमा के बाहर ही छोड़ दिया करते हैं ।
अर्थात् जनार्दन देव पंचक्रोशी की सीमा पर पहुँचकर गरुड़ से उतर ध्रुव को हाथ से पकड़ कर चलते हैं।
वलीवर्दं समारूढ़ा श्रृणु तस्याऽपि यत्फलम् ।
नरके वसते घोरे समाः कल्पशतायुतम् ॥ 3
जो पुरुष बैलगाड़ी पर यात्रा करता है, वह घोर नरक में पड़ता है। क्योकि गौवों का क्रोध बड़ा भयानक होता है।
सलिलं च न गृहन्ति पितरस्तस्य देहिनः ।।4
ऐश्वर्याल्लोभमोहाद्वा, गच्छेद्यानेन यो नरः ।। 5
घन के लोभ में मोहवश साथवश हम सवारी से चलते हैं तुम भी सवारी से चलो ऐसे यात्रा करने वाले के हाथ का जल पितर लोग ग्रहण नहीं करते।
निष्फलं तस्य तत्तीर्थं तस्माद्यानं विवर्जयेत् ।।6
(कूर्मपुराण अ० ३७)
उसकी वह पंचक्रोश यात्रा निष्फल हो जायेगी, इसलिए सवारी से यात्रा नहीं करना चाहिए।
नरयानं चाश्वतरी, हयादिसहितो रथः ।
तीर्थयात्रा ह्यशक्तानां, यानदोषकरी नहि ।। 5 (कूर्मपुराणे)
जो यात्रा करने में असमर्थ है, उनको घोड़ा गाड़ी से अथवा पालकी से जाने में दोष नहीं होता। शक्ति रहते हुए नहीं ।
गोयाने गोवधः प्रोक्तो, हय्याने तु निष्फलम् ।
नरयाने तदर्थस्यात् पद्भ्यां तच्च चतुर्गुणम् ।। 6
बैलबाड़ी से चलने में गोवध का पाप होता है और घोड़ा गाड़ी से यात्रा निष्फल होती है। पालकी से आधा और पैदल चौगुनाफल होता है।
पद्भ्याम् पादुका शून्याभ्याम् ।(विष्णुपुराणे)
पैदल यानी बिना जूता के यात्रा करना चाहिये।
यानमर्धफलं हन्ति, तदर्थ छत्रपादुके ।
वाणिज्यं त्रींस्तत्भागान् सर्वं हन्ति प्रतिग्रहः ।।
सवारी आधा फल ले लेती है। उससे आधा छाता और जूता, वाणिज्य तीन भाग, प्रतिग्रह यानी (दान) का सब फल ले लेता है।
#नोट :- जो बिना जूता के नहीं चल सकते, वे कपड़े का पहने जो शक्ति रहते मोटर आदि सवारियों से चलते है, उनका जाना निष्फल हैं। क्योकि प्रायश्चित्त शारीरिक कष्ट के द्वारा होता है। शक्ति रहते मोटर आदि सवारियों से कभी नहीं जाना चाहिए। इससे तीर्थ की मर्यादा भंग होती है और दूसरे यात्रियों के चलने में उद्विग्न होने का दोष होता है। ऐसी स्थिति में अपने नाम गोत्र के द्वारा यात्रा करने के लिए बाह्य प्रतिनिधि स्वरूप भेज सकते है। ऐसे ही नियमानुसार स्वर्गवासियों के निमित्त भेजा जा सकता है।
#यात्रामेंवास_विचार
फाल्गुन मास की यात्रा शिवरहस्य के मत से ७ रात्रि निवास का रक्खा गया है और काशी रहस्य के अनुसार चार रात्रि निवास का रक्खा गया है।
सेतुलिंग पुराण का मत है यात्रा करने वालों को एक रात्रि वास पाशपाणि विनायक पर करना चाहिये। काशीरहस्य के मतानुसार पाशपाणि विनायक का पूजन ही लिखा है।
सूतसूत महाबुद्धे वेदविद्याविशारद ।
यथा प्रदक्षिणा कार्या मनुजैर्विधिपूर्वकम् ।।1
स्थानंवासस्य वद नो, भक्ष्यं वाऽभक्ष्यमेवच ।
पूजां सीम्नि स्थितानां च देवानां दानमेव च ।। 2
यथा सम्पूर्णतामेति,यात्राक्षेत्रस्य सत्तम ॥ 3
ऋषियों ने पूछा है कि, हे सूत ! जैसे लोगो को विधि पूर्वक प्रदक्षिणा करनी चाहिए और जहां वास करना चाहिए, यह विस्तार से कहिये
#सूतजी_बोले इसी प्रकार पहले पार्वती ने शिवजी से पूछा था। शिवजी ने पार्वतीजी को जो विधि बतायी है, वही उत्तम विधि कहता हूँ।
जो यात्री दो रात्रि-वास करके यात्रा करना चाहे तो भीमचण्डी, रामेश्वर में वास करें। तीन रात्रिवास करके यात्रा करने वाला दुर्गाकुण्ड, भीमचण्डी, रामेश्वर में वास करे और चार रात्रि में यात्रा करने की इच्छा वाला कदमेश्वर, भीमचण्डी, रामेश्वर और कपिलधारा में वास करे। सात दिन का वास करने की इच्छा वाला दुर्गाकुण्ड, कर्दमेश्वर, भीमचण्डी, देहली विनायक, रामेश्वर, पाशपाणि विनायक और कपिलधारा में वास करें। वरुणा नदी का सर्वथा उल्लघन नहीं लिखा है। राजा, वृद्ध, सुकुमार बालकों के लिए जहां मर्जी हो वहां वास करें।
#यात्रामेंभोजनकानियम
परान- दूसरे का अत्र नहीं ग्रहण करना चाहिए। तैल मांसादि सेवन नहीं करना, मांसान्नादि-मसूरी, उरद, चना, कोदो यह सब अत्र और पान नहीं खाना। रात्रि जागरण, कीर्तन, भजन, पुराणपाठ, भूमिशयन आदि करना । पर स्त्री भाषण नहीं करना चाहिए । पर-धन ग्रहण नहीं करना, असत्य भाषण नहीं करना चाहिए। दुर्जन पापियों का संग नहीं करना, किसी प्रकार की पापबुद्धि नहीं करनी चाहिए।