Monday, October 14, 2019
दक्षिणमुखी हनुमान जी रामनगर
दुर्लभ हनुमान जी की यह प्रतिमा अपने तरह की पुरे विश्व में एक अकेली और अनूठी प्रतिमा है!
काले पत्थर की यह प्रतिमा हनुमान के प्रतिरूप माने जाने वाले वानर की अवस्था में स्थापित है !और दक्षिणमुखी है,किसी भी तरफ से इसे देखने पर आपको लगेगा मानो यह आपके ही ओर देख रही है !!
और इस वानर रूपी काले हनुमान जी की प्रतिमा की सबसे ख़ास बात यह है की इस प्रतिमा पर मानव शरीर पर पाये जाने वाले बाल(रोये) की तरह रोये भी है!
#स्थापना
वर्षो पहले रामनगर के राजा को स्वपन आया की किले के पिछली तरफ एक वानर रूपी हनुमान जी की प्रतिमा है जिसकी स्थापना वही करा दी जाए!
अगली सुबह राजा ने खुदाई कराई और किले की पिछली तरफ गंगा किनारे यह प्रतिमा मिली और उसकी स्थापना वही करा दी गई !
#दर्शन पूजन
रामनगर किले के दक्षिणी ओर स्थापित यह मंदिर वर्ष के 364 दिन आम लोगो के लिए बंद ही रहता है ,और रामनगर की विश्व प्रसिद्द रामलीला के राजगद्दी पर होने वाली "भोर की आरती" वाले दिन आम जनों के लिए कुछ ही धंटो के लिए खुलता है (सुबह 10 से दोपहर 3 बजे तक)
फोटो साभार - इंडियन फोटो जेनेरिस्ट
Wednesday, October 9, 2019
Sunday, October 6, 2019
Tuesday, September 3, 2019
भगवान आशुतोष ने राजा दिवोदास से काशी कैसे छुड़वाई?
जब भगवान शंकर जी नें ब्रहादेव का आग्रह मानकर मन्दराचल पर गमन किया तब उन्ही के साथ समस्त देवतागण एवं विष्णु भगवान भी मन्दरांचल पर चले गयंे। पीछे गणेश और सूर्य ने भी वही प्रस्थान किया। काशी से देवताओं के चले जाने पर प्रभावशली राजा दिवोदास निर्दन्द होकर पृथ्वी कार राज्य करने लगा । वाराणसीपूुरी को अपनी राजधानी बनाकर प्रजा का धर्म तथा न्यायपूर्वक पालन करता हुआ व बुद्धिमान राजा उत्तरोत्तर बढ़ने लगा, सूर्य के समान वह तेजस्वी राजा दुष्टो की दृष्टी में खटकने लगाा। सज्जनों और दुर्जनों पर शासन करने वाला सुयोग्य एवं धर्मात्मा राजा धर्मराज के समान था। अनेक बार अर्जुन के समान अपने शत्रु रूपि जंगलों को जताने वाला हुआ। वह शत्रु रूपि राक्षसों का उच्छेदक बनकर प्राणियों की प्राण रक्षा में तत्पर होकर जग प्राण वायु के समान आदरणीय हुआ।
दिवोदास के राज्य मे कोई प्रजा आश्रय हीन या दुखी नही दिखायी देता था किन्तु दिवोदास के दरबार में समस्त कलाविंद इकट्ठा थे, स्वर्ग में तो देवराज इन्द्र गोत्रमित् नाम से प्रसिद्ध है दिवोदास के राज्य में कोई प्रजाजन गोत्र ताशकर छय होना नही सुना गया, स्वर्ग में एक ही हिर गर्भ दिखायी पड़ते किन्तु उसके राज्य में प्रजााजनो के गृह स्वयं ही हिरण गर्भ (सोने से परिपूर्ण) बने हुए थे जैसे स्वर्ग अप्सराओं से परिपूर्ण रहता है वैसे ही दिवोदास का राज्य भी अप्सराओ से पूर्ण था, राज्य में घर घर गृहलक्ष्मी निवास करती थी। स्वर्ग के राज्य में केवल एक ही कुवेर थे किन्तु दिवसेदास के राज्य में घर घर में कुबेर का निवास था। इस प्राकर दिवोदास ने काशी में अस्सी हजार वर्ष के सुख पूर्वक दिन व्यतीत किये, इसके अनन्तर देवतागण अपने गुरू वृहस्पति से उसका उपकार करने की मंत्रण करने लगे।
दिवोदास ने अनेक दुष्कर यज्ञों से यज्ञ भुक देवगणो का संताष किया किन्तु देवगण इनके हितैषी नहीं हो सके। देवताओं का ऐसा स्वभाव ही है कि वे पराया ऐस्वर्य नहीं देख सकते। बलि, बाणासुर और दधीची इसके प्रमाण है। यद्यपि धर्मानुष्ठान में पग पग पर विध्न पड़ते है किन्तु धर्मव्रर्ती विचलित नहीं होते। फिर भी उस राजा का वे कुछ नहीं बिगाड़ सके, उसके राज्य में पुरूष एक पत्नी व्रती एवं स्त्रीया पतिवर्ता का पालन करने वाली थी। राज्य में कोई पुत्रहीन, दरिद्री नहीं था। अकाल मृत्य सुनने में नहीं आती थी, दुष्ट, हिंसक, पाखंडी, दुराचारी नहीं रहने पाते थे, सभी जगह वेद ध्वनि, शास्त्रालाप एवं परमार्थ की वार्ताएं ही सुनायी पड़ती थी। मंगलगीत, वीणा, वंशी और मृदंग के मधुर शब्द सभ्ज्ञी जगह गुंजता था।
सभी प्रजा भक्ति पुर्वक देवपूजन में तत्पर रहते थे। वृहस्पति नें देवताओं से कहा कि हे देवगण राजा दिवोदास नीति निपुर्ण धर्मत्मा है वह संधि, प्रयाग, आसन, संश्रय और भेद इन छहों नीतियों का पालन करने वाला है वैसा अन्य कोई नहीं है।
देवगुरू ने इन्द्र के समीपत्य अग्नि से कहा कि आपका जो रूप पृथ्वी पर प्रतिष्ठित है बसे दिवोदास के राज्य से हटा लिजिए जब आप वहां सें चले आयेगे तो प्रजाये आप के अभाव में ध्वादि क्रियाओं से शून्य हो जायेगाराजा के विरूद्ध हो जाने से राज्य निपुण हो जायेगाा। अर्थात कुछ दिनों से सारा राज्य नष्ट हो जायेगा प्रजा जिस राजा का त्याग कर दे उसका कोप दुर्ग और सेना सभी नष्ट हो जायेगा। वृहस्तति के ऐसे कहने से अग्निदेव ने अपना स्वरूपव योग माया से खींच लिया, अग्निदेव के स्वर्ग में चले जाने पर राजा ने भोजन गृह में प्रवेश किया रसोइयां के लोगों ने महाराज से करबद्ध निवेदन किया कि हे सूर्य के समान तेजस्वी महाराज में अभयदान दे हम कुछ कहना चाहते हैं राजा ने संकेत में आज्ञा दी। रसोइये कहने लगाा कि हे महाराज आपके प्रताप से लज्जित होकर या अन्य किसी कारण से अग्निदेव ने आप का नगर त्याग दिया है ऐसी दशा में पाकक्रिया कैसे सम्पन्न हो फिर भी सूर्य के प्रकाश में थोरा पदार्थ पका लिया है यदि आज्ञा हो तो उपस्थित करे इतना सुनने के बाद राजा देवोदास ने निश्चित कर लिया कि यह सब देवताओं का खिलवाड़ है ध्यान से विचार किया कि अग्निदेव ने केवल रसोई ही नही पूरा राज्य ही छोड़ दिया हैं प्रजा मंे त्राही त्राही मच गया तब दिवोदास ने कहा कि अच्छा अग्निदेव भूलोक छोड़कर वे स्वर्ग मे चले गये है तो ठीक हैं इससे उनकी राज्य में किसी भी तरह कि प्रजा के अंदर हानि नहीं पहंुचेगी परंन्तु अग्निदेव को ही हानि पहंुचेगी मैने किसी भरोसे पर राज्य का भार नहीं उठाया है कि सोच ही रहे थे कि राज्यवंशी संभ्रातं नागरिक राजद्वार पर आ पहुंचे राजा ने आये हुए समस्त प्रजाओं को भीरत बुलाया, प्रजागण ने राजा को उपहार भेट कर प्रणाम किया, राजा ने भी पे्रमपुर्वक उनका उपहार अभिवादन स्वीकार किया । वे सब रत्नों की चमक से शोभायमान राजा के आंगन में बैठ गये, राजा ने मुखकृति से उना अभिप्राय जानकर कहा कि हे प्रजागण यदि उत्पाती देवताओं ने अग्नि को भूमि पर से हटा लिया है तो कोई चिंता नहीं।
अग्निदेव चले गये तो वायु वरूण चंद्र एवं सूर्य भी अभी प्रस्थान कर दे मै प्रजाओं के हितार्थ समस्त धन्यवादियों का उत्यादर मेघ बनकर वृष्टि करूंगा अपनी तपस्या और योग बल से अग्नि के तीन रूप बनाकर पाक यज्ञ, एवं दाह कर्म का संपादन करूगा। वायु बनकर प्राण संचालन करूगा। जलमूर्ति धारण कर प्रजा जन को जीवन प्रदान करूगा। सूर्य चंद्र के राहु अस्त होने पर प्राणी जीवित नहीं रहते सूर्यदेव मेरे मूल पुरूष है । मेरे मानवीय है वे आकाश मंडल में है और सहर्ष आना जाना जारी रखे।
प्रजागण राजा के आस्वासन को पाकर प्रसन्न हो गये, निश्चित होकर अपने अपने घर चले गये। राजा ने जैसा कहा वैसा ही हुआ, दिवोदास ने अपनी तपोबल से अग्नि और सूर्य से भी अधिक तेजस्वी बनकर देवताओं का मुंहतोड़ उत्तर प्रस्तुत कर दिया। दिवोदास राजा के इस प्रकार के कार्य को देखकर भगवान विष्णु राजा से बोले हे राजन तुमने अस्सी सहत्र्ष वर्षो तक काशी पर शासन किया है। अब देवाधीदेव महादेव की प्रबल इच्छा है कि पार्वती उवं सभी देवगणों के साथ काशी में निवास करने की तो राजन तुम्हें हम स्वर्ग लोक भेजतें है तुम एक दिवादासेस्वर शिवलिंग की स्थापना काशी में करो, इस वचन को सुनकर राजा दिवोदास ने धर्मपीठ नामक क्षेत्र में डी 2/14 मीरघाट स्थित धर्मकुट में भगवान शिव की स्थापना स्वयं किया। जिसका देखरेख महन्त बबलू तिवारी द्वारा किया जाता है। जिसमा मान्यता है कि इनका प्रतिदिन दर्शनकरने से भक्तों का तीन हिस्सा पाप कट जाता हैं। और समस्त कार्य अपने आप होता रहेगा। और राज्यद्वार एवं संतान सभी भरा रहता है। जो इस स्थल एक शक्ति पीठ स्थल के नाम से विख्यात है।
Friday, May 24, 2019
Varanasi Lok Sabha Election 2019 Result
Prime Minister Narendra Modi Thursday (23-May-2019) won the Varanasi Lok Sabha seat defeating his nearest rival Shalini Yadav of Samajwadi Party by a margin of nearly 4.80 lakh votes.
Modi won the Varanasi seat by 4,79,505 votes, an Election Commission update on poll results said here.
In the 2014 general elections, Modi had won by a margin of 3,71,784 votes against his nearest rival, Aam Admi party supremo Arvind Kejariwal.
While Prime Minister Modi got 6,74,664 votes, Shalini Yadav got 1,95,159 votes. Congress candidate Ajay Rai secured third position, polling 1,52,548 votes.
PM Modi's votes share stood at 63.62 per cent against Yadav's 18.4 percent and Rai's 14.38 per cent.
There were 26 candidates in the fray from Varanasi, but a total of 4,037 electors voted for none and pressed the NOTA (non of the above) button on EVM.
Modi won the Varanasi seat by 4,79,505 votes, an Election Commission update on poll results said here.
In the 2014 general elections, Modi had won by a margin of 3,71,784 votes against his nearest rival, Aam Admi party supremo Arvind Kejariwal.
While Prime Minister Modi got 6,74,664 votes, Shalini Yadav got 1,95,159 votes. Congress candidate Ajay Rai secured third position, polling 1,52,548 votes.
PM Modi's votes share stood at 63.62 per cent against Yadav's 18.4 percent and Rai's 14.38 per cent.
There were 26 candidates in the fray from Varanasi, but a total of 4,037 electors voted for none and pressed the NOTA (non of the above) button on EVM.
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