Monday, February 16, 2015

घर पर कैसे करें शिवरात्रि का पूजन, जानें सरलतम विधि

महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त-गण विविध उपाय करते हैं। लेकिन हर उपाय साधारण जनमानस के लिए सरल नहीं होते।
पेश हैं घर पर ही महाशिवरात्रि पूजन की अत्यंत आसान विधि। यह पूजन विधि जितनी आसान है उतनी ही फलदायी भी। भगवान शिव अत्यंत सरल स्वभाव के देवता माने गए हैं अत: उन्हें सरलतम तरीकों से ही प्रसन्न किया जा सकता है।
वैदिक शिव पूजन - भगवान शंकर की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन करें। यज्ञोपवित धारण कर शरीर शुद्ध करें। तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें। पूजन-सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षादीप प्रज्ज्वलित कर लें।
अब स्वस्ति-पाठ करें।
स्वस्ति-पाठ -
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:, स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदा:, स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु।
- इसके बाद पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश एवं गौरी-माता पार्वती का स्मरण कर पूजन करना चाहिए।
यदि आप रूद्राभिषेक, लघुरूद्र, महारूद्र आदि विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं, तब नवग्रह, कलश, षोडश-मात्रका का भी पूजन करना चाहिए।
संकल्प करते हुए भगवान गणेश व माता पार्वती का पूजन करें फिर नन्दीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय (स्त्रियां कार्तिकेय का पूजन नहीं करें) एवं सर्प का संक्षिप्त पूजन करना चाहिए।
- इसके पश्चात हाथ में बिल्वपत्र एवं अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान करें।
भगवान शिव का ध्यान करने के बाद आसन, आचमन, स्नान, दही-स्नान, घी-स्नान, शहद-स्नान व शक्कर-स्नान कराएं।
- इसके बाद भगवान का एक साथ पंचामृत स्नान कराएं। फिर सुगंध-स्नान कराएं फिर शुद्ध स्नान कराएं।
अब भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाएं। वस्त्र के बाद जनेऊ चढाएं। फिर सुगंध, इत्र, अक्षत, पुष्पमाला, बिल्वपत्र चढाएं।
अब भगवान शिव को विविध प्रकार के फल चढ़ाएं। इसके पश्चात धूप-दीप जलाएं।
हाथ धोकर भोलेनाथ को नैवेद्य लगाएं।
नैवेद्य के बाद फल, पान-नारियल, दक्षिणा चढ़ाकर आरती करें। (जय शिव ओंकारा वाली शिव-आरती)
- इसके बाद क्षमा-याचना करें।
क्षमा मंत्र : आह्वानं ना जानामि, ना जानामि तवार्चनम, पूजाश्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर:।
इस प्रकार संक्षिप्त पूजन करने से ही भगवान शिव प्रसन्न होकर सारे मनोरथ पूर्ण करेंगे। घर में पूरी श्रद्धा के साथ साधारण पूजन भी किया जाए तो भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं।

शिवरात्रि

महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। तीनों भुवनों की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरां को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं।
महाशिवरात्रि भगवान शंकर का सबसे पवित्र दिन है। यह अपनी आत्मा को पुनीत करने का महाव्रत है। इसके करने से सब पापों का नाश हो जाता है। हिंसक प्रवृत्ति बदल जाती है। निरीह जीवों के प्रति दया भाव उपज जाता है। ईशान संहिता में इसकी महत्ता का उल्लेख इस प्रकार किया गया है-
॥शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनम्। आचाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं॥
विशेष
चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम शुभफलदायी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है। परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है।ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ कहा गया हैं। शिव का अर्थ है कल्याण। शिव सबका कल्याण करने वाले हैं। अत: महाशिवरात्रि पर सरल उपाय करने से ही इच्छित सुख की प्राप्ति होती है।
ज्योतिषीय गणित के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जाते हैं। जिस कारण बलहीन चंद्रमा सृष्टि को ऊर्जा देने में असमर्थ हो जाते हैं। चंद्रमा का सीधा संबंध मन से कहा गया है। मन कमजोर होने पर भौतिक संताप प्राणी को घेर लेते हैं तथा विषाद की स्थिति उत्पन्न होती है। इससे कष्टों का सामना करना पड़ता है।
चंद्रमा शिव के मस्तक पर सुशोभित है। अत: चंद्रदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का आश्रय लिया जाता है। महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है। अत: प्राय: ज्योतिषी शिवरात्रि को शिव आराधना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं। शिव आदि-अनादि है। सृष्टि के विनाश व पुन:स्थापन के बीच की कड़ी है। प्रलय यानी कष्ट, पुन:स्थापन यानी सुख। अत: ज्योतिष में शिव को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने की महत्ता कही गई है।


Tuesday, February 3, 2015

Sant Ravidas Jayanti

Ravidas holds an importance place among the sufis and saints of Indian origin. He is also known as Raidas. Ravidas belonged to the same period as Kabir. In 2014, Ravidas Jayanti will be celebrated on 14th Febuary, Friday. Ravidas was born the day of Magh Purnima in the year 1398 in a village near Varanasi. He was born on a Sunday. Hence, he was named, Ravidas. He is known to be a disciple of Ramanand.

Biography of Sant Ravidas
There is not enough evidence about the period in which Ravidas lived. According to some, he was born in Kashi and lived during 1482-1527. Others believe that he was born on Magh Purnima in the year 1398. He was born in a family of shoe-makers. His father’s name as Raghu and mother was known as Ghurviniya. Shoe making was his family business. He accepted and worked hard. He was soft-spoken and sweet due to which he was liked by the other people.

Saint and Poet Ravidas
The medieval period is also known as Bhakti Kal in Indian history and literature. Many saints and sufis were present in this time who tried to abolish many wrong practices that generated from Indian culture. Ravidas played an important role during this period and tried to abolish discrimination based on Dharma, Caste etc.

Ravidas was devoted towards Lord and was a great poet. Generosity, devotion towards God and sadhna can be clearly seen in his works. Ravidas tried to express himself through Bhakti and Satsang. He always worked for the betterment of the society.

Prabhu ji tum chandan hum pani,
Jaki anga anga vaas samani,
Prabhu ji tum dhanban hum mora,
Jaise chitvan chandra chakora,
Prabhu ji tum deepak hum baati,
Jaki jyoti bare din raati,
Prabhu ji tum moti hum dhaga,
Jaise sonahi milat suhaga,
Prabhu ji tum swami hum dasa,
Aisi bhakti kare Raidasa.

In the above passage, Ravidas explains his thoughts through imagination and devotion. He has explained everything in simple words. Due to this, the common people have always easily understood his works.

The incidents of his life have always been inspiration to the people. According to one such incident, Ravidas’s disciples wanted to go for a bath in river Ganga and insisted Ravidas to come along. Ravidas said that he had already promised someone that he would make shoes for the person on that particular day. Hence, he would not be able to go. He also said that by doing his work, he would feel like he has taken a bath in river Ganga. Since then, there is a saying that is famous which goes as : ‘Man Changa Toh Kathauti Me Ganga’.

The Dohas and Bhakti songs written by Ravidas have always tried to spread love and care among the people’s hearts. Ravidas also tried to bring the Hindus and Muslims together and this is evident from his thoughts which have been expressed in his songs. He said that one can meet God in his own heart even if he does not go on any pilgrimage.

Ka Mathura, Ka Dwarika, Ka Kashi Haridwar,
Raidas Khoja Dil Aapna, Teh Miliya Dildar.

Significance of Ravidas Jayanti
Ravidas is believed to be devoted to Lord Rama and Lord Krishna. His famous Dohas are still used by the people and many songs have been writeen with them. Sant Ravidas Jayanti is celebrated with a lot of zeal in the whole country. A Shobha Yatra is organized on this day. Satsang etc are also organized based on Ravidas’s thoughts and works. People dedicate flowers in respect on his Jayanti.


संत रविदास जयंती

भारत की मध्ययुगीन संत परंपरा में रविदास या कहें रैदास जी का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है. संत रैदास जी कबीर के समसामयिक थे. संत कवि रविदास का जन्म वाराणसी के पास एक गाँव में सन 1398 में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था रविवार के दिन जन्म होने के कारण इनका नाम रविदास रखा गया. रविदास जी को रामानन्द का शिष्य माना जाता है.
रैदास जी के जन्म के संबंध में उचित प्रामाणिक जानकारी मौजूद नहीं है कुछ विद्वान काशी में जन्मे रैदास का समय 1482-1527 ई. के बीच मानते हैं तो कुछ के अनुसार रैदास का जन्म काशी में 1398 में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ माना जाता है. संत कवि रविदास जी का जन्म चर्मकार कुल में हुआ था.
इनके पिता का नाम 'रग्घु' और माता का नाम 'घुरविनिया' बताया जाता है. चर्मकार का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया. अपने कार्य को यह बहुत लगन और मेहनत से किया करते थे. उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण लोग इनसे बहुत प्रसन्न रहते थे.
हिन्दी साहित्य के इतिहास में मध्यकाल, भक्तिकाल के नाम से प्रख्यात है. इस काल में अनेक संत एवं भक्त कवि हुए जिन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त अनेक कुरूतियों को समाप्त करने का प्रयास किया. इन महान संतों कवियों की श्रेणी में रैदास जी का प्रमुख स्थान रहा है उन्होंने जाति, वर्ग एवं धर्म के मध्य की दूरियों को मिटाने और उन्हें कम करने का भरसक प्रयत्न किया.
रविदास जी भक्त और साधक और कवि थे उनके पदों में प्रभु भक्ति भावना, ध्यान साधना तथा आत्म निवेदन की भावना प्रमुख रूप में देखी जा सकती है. रैदास जी ने भक्ति के मार्ग को अपनाया था सत्संग द्वारा इन्होने अपने विचारों को जनता के मध्य पहुंचाया तथा अपने ज्ञान तथा उच्च विचारों से समाज को लाभान्वित किया.
प्रभुजी तुम चंदन हम पानी।
जाकी अंग अंग वास समानी।।
प्रभुजी तुम धनबन हम मोरा।
जैसे चितवत चन्द्र चकोरा।।
प्रभुजी तुम दीपक हम बाती।
जाकी जोति बरै दिन राती।।
प्रभुजी तुम मोती हम धागा।
जैसे सोनहि मिलत सुहागा।।
प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा।
ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
उपर्युक्त पद में रविदास ने अपनी कल्पनाशीलता, आध्यात्मिक शक्ति तथा अपने चिन्तन को सहज एवं सरल भाषा में व्यक्त करते हैं. रैदास जी के सहज-सरल भाषा में कहे गये इन उच्च भावों को समझना आम जन के लिए बहुत आसान रहा है.
उनके जीवन की घटनाओं से उनके गुणों का ज्ञान होता है. एक घटना अनुसार गंगा-स्नान के लिए रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले, 'गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य जाता परंतु मैने किसी को आज ही जूते बनाकर देने का वचन दिया है और अगर मैं जूते नहीं दे सका तो वचन भंग होता है. अत: मन सही है तो इस कठौती के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है. कहा जाता है कि इस प्रकार के व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गयी कि - 'मन चंगा तो कठौती में गंगा’
रविदास जी के भक्ति गीतों एवं दोहों ने भारतीय समाज में समरसता एवं प्रेम भाव उत्पन्न करने का प्रयास किया है. हिन्दू और मुसलिम में सौहार्द एवं सहिष्णुता उत्पन्न करने हेतु रविदास जी ने अथक प्रयास किए थे और इस तथ्य का प्रमाण उनके गीतों में देखा जा सकता है. वह कहते हैं कि तीर्थ यात्राएँ न भी करो तो भी ईश्वर को अपने हृदय में वह पा सकते हो.
का मथुरा का द्वारिका का काशी हरिद्वार।
रैदास खोजा दिल आपना तह मिलिया दिलदार।।
रविदास राम और कृष्ण भक्त परम्परा के कवि और संत माने जाते हैं। उनके प्रसिद्ध दोहे आज भी समाज में प्रचलित हैं जिन पर कई भजन बने हैं. संत रविदास जयंती देश भर में उत्साह एवं धूम धाम के साथ मनाई जाती है. इस अवसर पर शोभा यात्रा निकाली जाती है तथा शोभायात्रा में बैंड बाजों के साथ भव्य झांकियां भी देखने को मिलती हैं इसके अतिरिक्त रविदास जी के महत्व एवं उनके विचारों पर गोष्ठी और सतसंग का आयोजन भी होता है सभी लोग रविदास जी की पुण्य तिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.