छठ पूजा, आज से, यानी अक्टूबर 27, 2014 से प्रारम्भ हो चुकी है। छठ पूजा भगवान सूर्य की पूजा करने तथा उन्हें आदर देने के लिए मनाई जाती है, जो इस धरती पर जीवन का संचार करते हैं। अपने प्रियजनों की लम्बी उम्र और समृद्धि के लिए छठ पूजा के अवसर पर प्रार्थना कीजिए।
छठ पूजा का महत्त्व अब बहुत अधिक बढ़ने लगा है। चार दिनों तक चलने वाली यह छठ पूजा इस वर्ष, अक्टूबर 27, 2014 से प्रारम्भ हो रही है। छठ पूजा भगवान सूर्य को मनुष्यों की ओर से दिए जाने वाले धन्यवाद का स्वरूप है, जिनके कारण इस पृथ्वी पर जीवन संभव है।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमे व्रत, नदी या तालाब में स्नान और भगवान सूर्य की आराधना शामिल है। यह त्यौहार बिहार, झारखण्ड तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाना वाला अत्यंत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है और यहाँ इसे बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है। परन्तु अब यह देश के लगभग सभी बड़े शहरों और यहाँ तक कि विदेशों में भी मनाया जाने लगा है।
छठ पूजा 2014 - मान्यताएं और मनाने की विधि
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला त्यौहार है, आइए देखते हैं कौन से दिन क्या मनाया जाता है:
छठ पूजा पहला दिन - नहाय खाय
यह चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, आज के दिन जिसे व्रत रखना होता है, वह सूर्योदय से पहले नदी या तालाब में स्नान करके घर की साफ-सफाई इत्यादि करता है, साथ ही घर में और नदी किनारे पूजा का स्थान निश्चित करके वहाँ की भी साफ़-सफाई की जाती है। आज के दिन घर के सभी सदस्य सात्विक भोजन करते हैं।
छठ पूजा दूसरा दिन - खरना
पंचमी के दिन व्रत रखने वाले भक्त प्रातः स्नान करके पूरे दिन व्रत रखते हैं और सायं काल पुनः स्नान करके फिर गन्ने के रस या गुड से बने पूड़ी, खीर इत्यादि प्रसाद को भोजन स्वरूप ग्रहण करते हैं। आज के दिन वह अपने सभी सगे-संबंधियों को आमंत्रित भी करते हैं।
छठ पूजा तीसरा दिन - छठ
षष्ठी का दिन छठ पूजा का मुख्य दिन होता है, और इसी दिन के नाम पर ही इस त्यौहार का नाम भी पड़ा है। इस दिन छठ से सम्बंधित सभी प्रसाद बनाये जाते हैं, सायंकाल सूर्यास्त से पहले व्रत करने वाले नदी या तालाब में प्रवेश करते हैं और सूर्य को दूध तथा जल से अर्घ्य देते हैं, वह तब तक जल में रहते हैं जब तक पूरा सूर्यास्त ना हो जाए। सूर्यास्त के बाद सभी लोग घर आते हैं तथा रात्रि जागरण करते हैं।
छठ पूजा चौथा दिन - पारण
छठ पूजा का चौथा दिन समापन का दिन होता है, व्रत रखने वाले सूर्योदय से पहले नदी पर जाकर जल में प्रवेश करते हैं और सूर्य के उदित होने की प्रतीक्षा करते है। सूर्य जैसे उदित होते हैं, उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। विधिवत पूजा-अर्चना के बाद थोड़ा कच्चा दूध, जल और प्रसाद लेकर व्रत का समापन किया जाता है। और इस प्रकार जीवन दायी भगवान सूर्य की उपासना की चार दिनों तक चलने वाली पूजा पूर्ण होती है।